विजट महाराज चौरास के मंदिर में उमड़ा आस्था का सैलाब, देव संस्कृति की दिखी अनूठी झलक

सिरमौर जिला का गिरिपार क्षेत्र के लोग अपनी पारम्परिक रीती रिवाज़ व देवी देवताओं के प्रति काफी आस्था रखते आए है। आज भी ट्रांसगिरी का क्षेत्र अपने पुराने रीती रिवाज़ नही भूले है जिसका उदाहरण रविवार को चौरास गांव में देव आस्था की अनूठी मिसाल देखने को

विजट महाराज चौरास के मंदिर में उमड़ा आस्था का सैलाब, देव संस्कृति की दिखी अनूठी झलक

यंगवार्ता न्यूज़ - हरिपुरधार  22-05-2023
 
सिरमौर जिला का गिरिपार क्षेत्र के लोग अपनी पारम्परिक रीती रिवाज़ व देवी देवताओं के प्रति काफी आस्था रखते आए है। आज भी ट्रांसगिरी का क्षेत्र अपने पुराने रीती रिवाज़ नही भूले है जिसका उदाहरण रविवार को चौरास गांव में देव आस्था की अनूठी मिसाल देखने को मिली। दरअसल जिला के दुर्गम क्षेत्र चौरास गांव में में 500 सौ वर्ष पूर्व से यहां पर विजट देवता विराजमान है। यहां से ही देवना गांव विजट महाराज गए थे देवना गांव में भी विजट महाराज का भव्य मंदिर है । बता दे कि  पहले  चौरास गांव  में पुराना मंदिर हुआ करता था क्षेत्र के लोगों के सहयोग से यहां नए मंदिर का निर्माण कार्य किया  जिसके उपलक्ष पर यहां शांत उत्सव आयोजित हुआ। 
 
 
जानकारी के मुताबिक कई साल बाद यहां आयोजित शांत उत्सव में हजारों की संख्या में विभिन्न क्षेत्रों से लोग पहुंचे। परंपरा के अनुसार विधिवत मंदिर के ऊपरी हिस्से में खूनी यौड चढ़ाई गई। जिसके बाद नए मंदिर में विजट महाराज की मूर्ति को स्थापित किया गया। आयोजकों ने बताया कि जब भी किसी मंदिर का निर्माण होता है तो वहां उत्सव का आयोजन किया जाता है। मंदिर में खूनी यौड चढ़ाने का दृश्य अद्भुत होता है। खास बात यह है कि खुनीयौड एक ही पेड़ देवदार की लकड़ी से बनाया जाता है और जहां पर पेड़ काटा जाता है उसी स्थान से स्थापना वाले दिन खुनी यौड को उठाया और मंदिर में स्थापित किया जाता है। 
 
 
खुनी यौड को उठाना व इसे छूना शुभ माना जाता है। यही कारण है कि इसे उठाने में होड़ लगी रहती है। पारंपरिक ढोल नगाड़ों और देव उद्घोषओं के साथ खुनी यौड को मंदिर तक लाया जाता है। यहां बनाए गए इस मंदिर का निर्माण कार्य में करीब दो साल का वक्त लग गया। इस निर्माण कार्य पर जहां लाखो रुपए खर्च किए गए। वहीं यहां पहाड़ी शैली का अद्भुत नमूना पेश किया गया है। मंदिर का पूरा निर्माण पहाड़ी शैली में हुआ है और लकड़ी ऊपर अद्भुत नक्काशी की गई है। 
 
 
आयोजकों का कहना था कि लोगों ने भी मंदिर निर्माण में बढ़-चढ़कर सहयोग किया। शांत उत्सव के दौरान यहां विभिन्न क्षेत्रों से करीब एक दर्जन परगनो के लोग पहुंचे भी पहुंची और लोगों को एक साथ कई देवी देवताओं के दर्शन करने का मौका मिला। देव संस्कृति की जब इस तरह की तस्वीरें पेश आती है तो कहा जा सकता है कि आज भी हिमाचल के लोग देवी देवताओं में आस्था रखते हैं और देव संस्कृति यहां अभी भी जिंदा है।