सीटू के देशव्यापी आह्वान पर मजदूर संगठन ने प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर किए प्रदर्शन
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 10-06-2021
सीटू के देशव्यापी आह्वान पर मजदूर संगठन सीटू ने प्रदेश के जिला, ब्लॉक मुख्यालयों, कार्यस्थलों, गांव तथा घर द्वार पर सीटू कार्यकर्ताओं द्वारा मजदूरों की मांगों पर धरने प्रदर्शन किए गए। इस दौरान प्रदेश भर में हज़ारों मजदूरों ने अलग-अलग जगह कोविड नियमों का पालन करते हुए ये प्रदर्शन किए।
इस दौरान प्रदेश भर में विभिन्न अधिकारियों के माध्यम से प्रधानमंत्री को ज्ञापन सौंपे गए व मजदूरों की मांगों को पूर्ण करने की मांग की गई। इस दौरान शिमला में श्रम आयुक्त कार्यालय पर होटल ईस्टबोर्न के मजदूरों ने जोरदार प्रदर्शन किया।
इस दौरान प्रदर्शन को सीटू नेताओं ने सम्बोधित किया व डेढ़ साल के लंबित वेतन को जारी करने की मांग की। उन्होंने ईपीएफ कमिश्नर के आदेशों को लागू करने की मांग की। उन्होंने श्रम विभाग में हुए समझौते को लागू करने की मांग की अन्यथा आंदोलन तेज होगा।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने कोरोना से जान गंवाने वालों को सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशनुसार आपदा राहत कोष से तुरन्त चार लाख रुपये जारी करने की मांग की है।
कोरोना महामारी की आपदा में भी केंद्र सरकार ने केवल पूंजीपतियों के हितों की रखवाली की है। सरकार का रवैया इतना संवेदनहीन रहा है कि यह सरकार सबको अनिवार्य रूप से मुफ्त वैक्सीन तक उपलब्ध नहीं करवा पाई है। कोरोना काल में लगभग चौदह करोड़ मजदूर अपनी नौकरियों से वंचित हो चुके हैं परन्तु सरकार की ओर से इन्हें कोई मदद नहीं मिली।
इसके विपरीत मजदूरों के 44 श्रम कानूनों को खत्म करके मजदूर विरोधी चार लेबर कोड बना दिये गए। हिमाचल प्रदेश में पांच हज़ार से ज़्यादा कारखानों में कार्यरत लगभग साढ़े तीन लाख मजदूरों के काम के घण्टों को आठ से बढ़ाकर बारह कर दिया गया। किसानों के खिलाफ तीन काले कृषि कानून बना दिये गए हैं।
डॉक्टर,नर्सिंग स्टाफ,हैल्थ वर्करज़,पैरामेडिकल,सभी स्वास्थ्य कर्मियों,आशा,आंगनबाड़ी,मिड डे मील,सफाई,सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट कर्मियों,आउटसोर्स कर्मियों जैसे कोरोना योद्धाओं की रक्षा करने में यह सरकार पूर्णतः विफल रही है। इन्हें बीमा सुविधा तक देने में यह सरकार विफ़ल हुयी है।
लाखों लोग महामारी की चपेट में अपनी जान गंवा चुके हैं परंतु उनके परिवार को सरकार की ओर से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली है। इसके बजाय खाद्य वस्तुओं,सब्जियों व फलों के दाम में कई गुणा वृद्धि करके जनता से जीने का अधिकार भी छीना जा रहा है।
पेट्रोल-डीजल की बेलगाम कीमतों से जनता का जीना दूभर हो गया है। कोरोना काल में सरकारों की नाकामी के कारण देशभर में हज़ारों मेहनतकश लोगों को आत्महत्या तक करनी पड़ी है।
प्रदेशभर में पर्यटन क्षेत्र से जुड़े होटल, होम स्टे, रेस्तरां, ढाबों, टैक्सी, टूअर एन्ड ट्रेवल, गाइड, कुली, रेहड़ी फड़ी तयबजारी, घोड़े, फोटोग्राफर, एडवेंचर स्पोर्ट्स, कारोबार से जुड़े दुकानदार व सेल्जमैन, निजी स्कूलों के अध्यापक व कर्मचारी,निजी ट्रांसपोर्ट से जुड़े ऑपरेटर व कर्मी पूरी तरह बर्बादी के कगार पर पहुंच चुके हैं।
निजी स्कूलों की भारी भरकम फीसों ने इन स्कूलों में पढ़ने वाले लाखों अभिभावकों को गहरे आर्थिक संकट में डाल दिया है। सरकार की ओर से इन सभी को आर्थिक सहायता दी जाए। उन्होंने कहा है कि प्रदेश में सबसे ज़्यादा मजदूर मनरेगा व निर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं।
मनरेगा में हर हाल में दो सौ दिन का रोज़गार दिया जाए व राज्य सरकार द्वारा घोषित तीन सौ रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन लागू किया जाए। हिमाचल प्रदेश कामगार कल्याण बोर्ड से पंजीकृत सभी मनरेगा व निर्माण मजदूरों को छः हज़ार रुपये की आर्थिक मदद सुनिश्चित की जाए।