संविधान की उद्देशिका के आदर्शों को साकार करने में योगदान दें : राज्यपाल
संविधान का मूल भाव विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
संविधान का मूल भाव विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 26-11-2021
राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर ने कहा कि भारत का संविधान भारतीयता की सामाजिक, सांस्कृतिक रचना है, जिसकी आत्मा इसकी उद्देशिका में है। उन्होंने कहा कि हर नागरिक का कर्तव्य है कि उद्देशिका के आदर्शों को लेकर साकार करने के लिए हर संभव प्रयत्न करें।
राज्यपाल आज यहां भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में भारतीय स्वतंत्रता के 75 वें वर्ष में ‘संविधान का मूल भाव’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
संगोष्ठी का आयोजन भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के तत्वावधान में किया गया था। उन्होने कहा कि हमारे संविधान की आत्मा प्रस्तावना है, जो संविधान की बुनियादी विशेषताओं की कसौटी पर राष्ट्र के लिए मार्गदर्शक है। इससे बड़कर यह कि इसकी उद्देशिका का मूल भाव मानवता है।
एक ऐसी मानवता जिसमें मनुष्य ही नहीं संपूर्ण प्राणी जगत के कल्याण की भावना व्याप्त है। उन्होंने कहा कि शाब्दिक ज्ञान के साथ-साथ इसके भाव को समझने की अधिक आवष्यकता है।
श्री आर्लेकर ने कहा कि अस्तित्व, लोकतंत्र और व्यवस्था हमारी प्रकृति में निहित है। यही वजह है कि आज भी ग्रामीण स्तर पर कई स्थानों पर एक व्यक्ति निर्णय की क्षमता रखता है और मार्गदर्शन करता है।
उन्होंने कहा कि दूसरों के साथ हम कैसा व्यवहार करते हैं यही धर्म की सच्ची परिभाषा है और यही हमारे अस्तित्व का भाव है, जिसे हमें बनाये रखना है।
उन्होंने संविधान दिवस पर बधाई देते हुए कहा कि यह हमें न्याय और समता के महान मूल्यों का साझीदार बनने का अवसर प्रदान करता है। संस्थान के अध्यक्ष कपिल कपूर ने कहा कि भारतीय समाज व परंपरा स्वशासी सिद्धांत पर आधारित रहा है और यही वजह है कि तमाम राजनीतिक चुनौतियों के बावजूद हमारी संस्कृति और सभ्यता जीवित रही क्योंकि यहां स्वशासी इकाइयां कार्य करती थीं।
यही कारण है कि पुरातन संस्कृति में पंच को परमेश्वर तक कहा गया। उन्होंने उत्तरदायी शासन और सुशासन के भेद पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमारा समाज कर्तव्यपरायण है और कर्तव्य सद्भाव उन्मुख अवधारणा है। ऐसे व्यक्ति का यहां आदर होता है जो त्याग करता है।
संस्थान के निदेशक प्रो चमनलाल गुप्ता ने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव हम सबके लिए गौरव और आनंद का विषय है। यह इस कालखंड के आकलन का समय है।
उन्होंने कहा कि हमारे सांस्कृतिक भाव में बन्धुत्व का चिंतन है और यह विरासत दुनिया में केवल हमें मिली है। इससे पूर्व, संस्थान के सचिव श्री प्रेम चंद ने राज्यपाल का स्वागत किया तथा संगोष्ठी के विभिन्न स्तर की जानकारी दी।