हिमाचल में सेब पर मौसम की मार, ब्लैक स्पॉट से बागवान परेशान
प्रदेश में सेब पर लंबे ड्राइ स्पेल का इंपैक्ट दिखने लगा है। कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों के बगीचों में वूली एफिड, माइट, सेब के दानों पर ब्लैक स्पॉट, रस्टिंग जैसी बीमारियां नजर आ रही
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 03-07-2022
प्रदेश में सेब पर लंबे ड्राइ स्पेल का इंपैक्ट दिखने लगा है। कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों के बगीचों में वूली एफिड, माइट, सेब के दानों पर ब्लैक स्पॉट, रस्टिंग जैसी बीमारियां नजर आ रही हैं। इससे सेब की क्वालिटी पर बुरा असर पड़ रहा है।
चिंता इस बात की है कि राज्य के कई क्षेत्रों में मानसून में भी कम बारिश हो रही है। एक जून से एक जुलाई तक मात्र 76.1 मिलीमीटर बारिश हुई है, जबकि इस अवधि में 105.2 मिलीमीटर सामान्य बारिश होती है।
लाहौल स्पीति जिला में सबसे ज्यादा 73 फीसदी कम मेघ बरसे हैं। किन्नौर जिला में 63 फीसदी कम, सिरमौर 42 फीसदी और शिमला जिला में भी सामान्य से 32 फीसदी कम बारिश हुई है।
प्रोग्रेसिव ग्रोवर एसोसिएशन के अध्यक्ष लोकेंद्र बिष्ट ने बताया कि इस बार शायद ही कोई बागवान ऐसा होगा जिनके सेब के दानों में ब्लैक स्पाट नहीं है। उन्होंने बताया कि 7000 फीट से कम ऊंचे क्षेत्रों के सेब बगीचों में अब वूली एफिड भी नजर आने लगा है। इससे क्वालिटी प्रभावित हो रही है।
कोटखाई के बागवान आतिश चौहान ने बताया कि सूखे के कारण साइज नहीं बन पा रहा है। ड्रॉट की वजह से रस्टिंग की समस्या भी काफी ज्यादा है। उन्होंने बताया कि सूखे के कारण कलर चेक हो गया है। उन्होंने बताया कि पहले माइट भी सेब को काफी नुकसान कर चुका है।
माइट अब नियंत्रण में है तो वूली एफिड नुकसान कर रहा है। बागवानों ने उद्यान विभाग और नौणी यूनिवर्सिटी से प्रदेश के विभिन्न सेब बहुल क्षेत्रों में जाकर बीमारियों पर स्टडी करने की मांग की है, ताकि रिसर्च के आधार पर बागवानों को दवाइयों के छिड़काव का सुझाव दिया जा सके।
कम बारिश का असर सीधे तौर पर सेब पर पड़ रहा है। जिन क्षेत्रों में सेब का जल्दी तुड़ान होता है, वहां अब आकार बनने की कम ही गुंजाइश बची है। इससे सेब के उत्पादन में गिरावट होगी। वहीं अधिक ऊंचे क्षेत्रों में साइज में सुधार के लिए काफी समय है।
ऊपरी शिमला और जिला किन्नौर के लोअर एरिया में मानसून में अधिक बारिश होने के साथ सेब की पत्तियां फंगस की चपेट आ जाती हैं। इससे उन पर स्कैब का खतरा बढ़ जाता है। इस रोग में सेब भूरा या काला होने लगता है। संक्रमित पत्तियां क्रैक होने के साथ जल्दी गिरती हैं और फल खराब होते हैं।