राजस्थान के संकटकाल में संकटमोचक बनकर उभरीं प्रियंका गांधी वाड्रा

राजस्थान के संकटकाल में संकटमोचक बनकर उभरीं प्रियंका गांधी वाड्रा

न्यूज़ एजेंसी - दिल्ली 13-07-2020

राजस्थान के विधानसभा चुनाव के बाद वहां मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान शुरू हो गई थी। पार्टी का एक धड़ा युवा नेतृत्व को कुर्सी पर देखना चाह रहा था तो दूसरा दल अनुभव को सत्तासीन करना चाह रहा था। खींचतान बढ़ी तो 14 दिसंबर 2018 को राहुल गांधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट को दिल्ली बुलाया और दोनों के साथ तस्वीर खिंचवाई।

इसके बाद जो सरकार बनी उसमें गहलोत सरकार के पायलट बने और सचिन को को-पायलट की सीट पर संतोष करना पड़ा। लेकिन यह उड़ान टेकऑफ के बाद से लगातार हवा में हिचकोले खाती रही। रविवार को राजनीतिक उठा-पटक और तेज हो गई।

वजह बना स्पेशल आपरेशन ग्रुप (एसओजी) का नोटिस। इसमें राज्य के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से बयान दर्ज कराने के लिए समय मांगा गया था। 10 जुलाई को ऐसा ही नोटिस मुख्यमंत्री अशोत गहलोत को भी भेजा गया था।

दरअसल, गहलोत ने भाजपा के तीन वरिष्ठ नेताओं गुलाब चंद कटारिया, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सतीश पूनिया और विधानसभा में विपक्ष के उपनेता राजेंद्र राठौड़ पर सरकार को गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाया था। कांग्रेस विधायक दल ने एसओजी को भाजपा नेताओं द्वारा 25 करोड़ रुपये देकर खरीद-फरोख्त की शिकायत की थी।

इसके बाद बयान दर्ज करवाने के लिए समय देने का नोटिस कई नेताओं को भेजा गया था। इससे पायलट कैंप खासा नाराज था। यहीं से शुरू हुई सरकार की सांप-सीढ़ी। वैसे राजस्थान की सरकार और कांग्रेस की राज्य इकाई जिस संकट से गुजर रही है, उसकी नींव दो साल पहले ही रखी जा चुकी थी।

राज्य की राजनीति के कई विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार बनने के बाद से ही पायलट को यह महसूस कराया जा रहा था कि उनकी अहमियत नहीं है। राज्यसभा चुनाव के दौरान दोनों नेताओं के बीच के बीच का मतभेद उभर कर सामने भी आया था।

अब जबकि कोरोना काल चल रहा है तो यह माना जा रहा था कि कुछ समय के लिए ही सही, पर यह विवाद थमा रहेगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। विधायकों की खरीद-फरोख्त का मामला और जांच के आदेश ने शांत पड़ी चिंगारी में घी डालने का काम कर दिया।

दूसरी ओर राज्य मे विवाद बढ़ता देख गांधी परिवार ने पूरे मामले से दूरी बना ली और गहलोत को यह संदेश दिया गया कि वो अपने दम पर सरकार को बचाएं। साथ ही यह भी समझाया गया कि हल ऐसा निकलना चाहिए जिससे सचिन पायलट को भी संदेश जाए और भविष्य में कोई बगावती सुर न छेड़े।

इसके बाद शुरू हुआ विधायकों की संख्या बल दिखाने का कार्यक्रम, जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत बाजी मारते हुए दिखे। दूसरी ओर सचिन पायलट ने भी यह कहते हुए नरमी का संदेश दिया कि वे भारतीय जनता पार्टी से नहीं जुड़ेंगे।

हालांकि यह कयास भी लगाए गए कि पायलट अपनी खुद ही अलग पार्टी बनाकर राहें जुदा कर सकते हैं। जैसे ही यह सिग्नल दिल्ली में गांधी परिवार तक पहुंचा, प्रियंका गांधी वाड्रा सक्रिय हो गईं। सूत्रों का कहना है कि प्रियंका ने खुद सोनिया गांधी से इस मामले को सुलझाने की अनुमति मांगी थी।

प्रियंका ने महाराष्ट्र से कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य राजीव सातव को अपना दूत बनाकर सचिन पायलट से बातचीत करने के लिए जयपुर भेजा। दूसरी तरफ अशोक गहलोत ने भी लगभग 90 विधायकों को अपने साथ बताया है।

अब यदि प्रियंका गांधी वाड्रा की वजह से राजस्थान का सत्ता संकट सुलझ गया तो यह तय है कि कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में उनका कद बढ़ जाएगा। इससे यह भी साबित होगा कि पार्टी के भीतर उनकी स्वीकार्यता राहुल गांधी से ज्यादा है।