शिलाई के मिल्ला गांव में खोडा उत्सव आज भी अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए बिख्यात

आज हम जिस संस्कृति,परंपरा और रिति रिवाज़ की चर्चा करते हैं उसी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखा है जिला सिरमौर के दुर्गम क्षेत्र शिलाई के मिल्ला गांव में जहां पर हर वर्ष की भांति इस बार भी खोडा उत्सव,,,,,,,,,

शिलाई के मिल्ला गांव में खोडा उत्सव आज भी अपनी संस्कृति और परंपरा के लिए बिख्यात

योंगवार्ता न्यूज़ - शिलाई     22-01-2023

आज हम जिस संस्कृति,परंपरा और रिति रिवाज़ की चर्चा करते हैं उसी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखा है जिला सिरमौर के दुर्गम क्षेत्र शिलाई के मिल्ला गांव में जहां पर हर वर्ष की भांति इस बार भी खोडा उत्सव अपनी संस्कृति परंपरा और रीति रिवाज ओर परंपरागत तरीके से मनाया गया। 

हर वर्ष जिला सिरमौर में त्योहार के ठीक आठ दिन के बाद मनाया जाता है जो कि  21 जनवरी को मिल्ला गांव के शिरगुल महाराज जी के मन्दिर (शिव महादेव) के प्रांगण में आयोजित किया जाता है। 

जहां सर्वप्रथम शिरगुल महाराज की पूजा अर्चना करने के बाद  विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं जेसे नौजवानों ओर बुजुर्गों द्वारा मंदिर के प्रांगण में तलवारों को घुमाकर परिक्रमा ओर अपने हुनर ओर आस्था का प्रतीक माना जाता है और समस्त मिल्ला गांव की जितनी भी बैटियो की शादी हुई है वह सभी रिश्तेदारों और भांजों सहित इस दिन विशेष रूप से उपस्थित होती है। 

नाटियां ओर रासे विशेष रूप से लगाती है और गांव के जितने भी नौजवान ओर बुज़ुर्ग जो किसी कार्य से बहार गए होते हैं इस दिन सभी लोग अपने इस परम्परागत (खोडा उत्सव) के एक दिन पहले अवश्य उपस्थित होते हैं और सभी मिलजुल कर इस उत्सव में शरिक होते हैं। जिसमें जाति धर्म से ऊपर उठकर एक साथ इस खोडा उत्सव को बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है ,

जिसमें हर घर में विशेष स्थानीय पकोवान जैसे शाकूली, गुलगुले,तैलपाकी,अख़रोट,खींडा, मुरमुरा, देसी घी, इत्यादि के स्थानीय पकवान विभिन्न घरों में देखने को मिलते हैं और सभी गांवों के बुजुर्गो को विशेष आदर भाव ओर परम्परागत तरीके से मंदिर के प्रांगण में बुलाया जाता है और विशेष रूप से उनकी खातिरदारी ओर सम्मान भी किया जाता है। 

विभिन्न प्रकार के स्थानीय पौशाक जेसे लोईयां, टोपी, इत्यादि को पहनकर अपनी संस्कृति का परिचय देती है और समस्त गांव की महिलाएं ओर गाव की बैटिया विशेष रूप से सिर पर  ढाटु पहनती हैं जो अपने आप में एक अनोखा है आज जहां आधुनिकता के दौर में गांव से शहरों की ओर पलायन हो रहा है तो वहीं आज भी मिल्ला गांव में इस तरह के आयोजन ओर संस्कृति, परंपरा और (खोडा उत्सव) अपने आप में जिला सिरमौर में एक अनूठा उदाहरण क़ायम किए हुए हैं। 

जिसको जिन्दा रखना हम सभी युवाओं और आने वाले भविष्य के लिए अतिआवश्यक भी है ताकि हमारी संस्कृति हमारी परंपरा सदा जिन्दा रहे और यह एक विशेष पहल देखने वाली है  इस उत्सव के ठीक एक दिन बाद  शिरगुल महाराज मंदिर में हर वर्ष की भांति इस दिन भर परंपरागत रूप से समस्त गांव के सहयोग से शिरगुल महाराज के नाम,सानिध्य,ओर आशिर्वाद से गांव के जरुरतमंद लोगों को धनराशि वितरित की जाती है। 

हर वर्ष शिरगुल महाराज के नाम से धनराशि बढ़ती जाती है और दूसरी किसी जरूरतमंद लोगों की सहायता हों जाती है और मंदिर के निर्माण कार्य में भी इस राशि को लगाया जाता है जो गांव में एक भाईचारा, एकता और अपनत्व की एक अनूठी मिसाल हमारे मिल्ला गांव में देखने को मिलती हैं।