कैक्टस फ्रूट का जूस, जैम और मुरब्बा  मधुमेह, काली खांसी के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल को भी करेंगा दूर 

डॉ. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के खाद्य विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिकों को इस जंगली फल के शोध से इसके औषधीय गुणों का पता लगाया है। वैज्ञानिकों ने कैक्टस के फल से जूस, जैम और मुरब्बा बनाने में सफलता हासिल

कैक्टस फ्रूट का जूस, जैम और मुरब्बा  मधुमेह, काली खांसी के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल को भी करेंगा दूर 

यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन    14-03-2022

डॉ. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के खाद्य विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के वैज्ञानिकों को इस जंगली फल के शोध से इसके औषधीय गुणों का पता लगाया है। वैज्ञानिकों ने कैक्टस के फल से जूस, जैम और मुरब्बा बनाने में सफलता हासिल की है। 

इस जंगली फल पर शोध कर इसका मानकीकरण किया गया है। निदेशक अनुसंधान डॉ. रविंदर शर्मा ने बताया कि विश्वविद्यालय यह तकनीक किसानों और उद्यमियों को एमओयू साइन करने पर कम लागत में उपलब्ध करवा सकता है।

मधुमेह, काली खांसी के साथ-साथ अब शरीर के बैड कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइडस को कैक्टस फ्रूट का जूस, जैम और मुरब्बा दूर करेगा। जंगल और बंजर इलाकों में पैदा होने वाले कैक्टस के फल (प्रिक्ली पीयर) में ऐसे औषधीय गुणों का पता चला है, जो उपरोक्त बीमारियों को दूर या कम करने में सहायक है।

ट्राइग्लिसराइडस एक तरह का फैट होता है जो हमारे खून में पाया जाता है। शरीर में इसकी अधिक मात्रा से दिल की बीमारियां होती हैं। इससे उच्च रक्तचाप और मधुमेह की शिकायत होती है। कैक्टस से बना जूस, जैम और मुरब्बा इसे नियंत्रित करता है। 

पौष्टिकता से भरपूर यह जंगली फल आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में खाने के लिए इस्तेमाल होता जाता है। आमतौर पर हिमाचल प्रदेश में इसकी औपुंशिया डेलेनाई किस्म 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। 

नौणी विवि के खाद्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रोफेसर एंड हैड डॉ. केडी शर्मा ने बताया कि भारत में इसकी शुरुआत अंग्रेजों द्वारा कोचिनियल डाई उत्पादन के उद्देश्य से 17वीं शताब्दी में की गई थी। भारत में इस फल की दो मुख्य प्रजातियां औपुंशिया फाइक्स इंडिका और औपुंशिया डेलेनाई पाई जाती हैं। 

इनमें से औपुंशिया फाइक्स इंडिका को नागफनी और औपुंशिया डेलेनाई को चित्तारथोर कहा जाता है। इसके 1.5 मीटर ऊंचे झाड़ीनुमा पौध में फल नवंबर से फरवरी तक लगते हैं और कभी-कभी यह अप्रैल के अंत तक भी रहते हैं।
 
निदेशक अनुसंधान डॉ. रविंदर शर्मा ने बताया कि इसके फल में नमी, शर्करा, अम्ल, वसा, रेषा, विटामिन सी एवं फिनॉल इत्यादि सामान्य पाए जाते हैं। खनिजों में पोटाशियम, सोडियम और मैग्नीज ज्यादा पाए जाते हैं। 

इस पौधे के सभी हिस्सों का दवाओं की परंपरागत प्रणाली में इस्तेमाल होता है। इसके क्लेडोड्स को एक प्रलेप के रूप में गर्मी और सूजन को दूर करने के लिए उपयोग किया जाता है।