न्यूज़ एजेंसी - अलीगढ़ 09-10-2022
रासायनिक खाद खेतों में खपाकर मिट्टी की सेहत बिगाड़ रहे किसानों को कृषि फार्म में हुए शोध से सबक लेना चाहिए। यहां प्राकृतिक खेती से धान का बेहतर उत्पादन हुआ है। फसल में रोग नहीं लगा, लागत भी मामूली आई। गुड़, बेसन, गोबर और गोमूत्र से ही दो एकड़ में 2.80 कुंतल अधिक पैदावार हुई। जबकि, रासायनिक खाद से उत्पादन कम हुआ। अधिक महत्वपूर्ण यह कि मिट्टी में जीवांश कार्बन की मात्रा पहले से बढ़ी है। यही जीवांश कार्बन मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।
शोध के परिणामों से उत्साहित कृषि वैज्ञानिक किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। शोध की रिपोर्ट कृषि निदेशालय भेजी जा रही है। जनपद में अधिकतर किसान रासायनिक खाद पर निर्भर हैं। 15 प्रतिशत किसान ही प्राकृतिक खेती से जुड़े हैं। यही कारण है कि रासायनिक खाद का लक्ष्य हर साल बढ़ जाता है। इस खरीफ सीजन में निर्धारित लक्ष्य से 21,056 मीट्रिक टन अधिक खाद की आपूर्ति हुई है।
किसान ये जानते हैं कि रासायनिक खाद से मिट्टी ही नहीं, फसलों की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है। फिर भी मोह नहीं छोड़ रहे। प्रशासन का जोर रासायनिक खाद की उपलब्धता पर ही रहता है, प्राकृतिक खेती की बातें सिर्फ गोष्ठियों में होती हैं। किसानों का मानना है कि रासायनिक खाद से फसलें रोग रहित रहती हैं, उत्पादन भी अच्छा होता है। किसानों के ये मिथक कृषि वैज्ञानिकों ने अपने शोध में तोड़े हैं।
कृषि फार्म पर हुए शोध ने स्पष्ट किया कि प्राकृतिक खेती से कम लागत में बेहतर उत्पादन ले सकते हैं। उप कृषि निदेशक (शोध) डा. बीके सचान बताते हैं कि 22 जुलाई को दो एकड़ में बासमती धान की रोपाई की गई थी। खाद के रूप में गुड़, बेसन, गोबर, गोमूत्र और बरगद के नीचे की मिट्टी का उपयोग किया। दूसरी ओर रासायनिक खाद आधारित धान की फसल की गई। फसल पकने पर कटाई कर परीक्षण हुआ।
रासायनिक खाद आधारित धान 34.30 कुंतल हुआ। यूरिया, डीएपी, पोटाश आदि पर लागत छह हजार रुपये आई। जबकि, प्राकृतिक खेती आधारित धान 37.10 कुंतल हुआ। लागत 700 रुपये आई। प्राकृतिक खेती से 2.80 कुंतल अधिक धान मिला। कृषि अधिकारी रागिब अली बताते हैं कि रासायनिक खाद के अत्याधिक उपयोग से जीवांश कार्बन नष्ट होते हैं। 0.51 से 0.80 प्रतिशत तक जीवांश कार्बन मिट्टी में होने चाहिए।
यहां मिट्टी में अनुमानित 0.30 प्रतिशत जीवांश कार्बन हैं। मृदा परीक्षण की रिपोर्ट के अनुसार अलीगढ़ मंडल में 0.21 (अति न्यूनतम) प्रतिशत जीवांश कार्बन वाली 13 प्रतिशत भूमि है। 0.21 से 0.50 प्रतिशत जीवांश कार्बन वाली 80 प्रतिशत भूमि है। छह प्रतिशत भूमि ही 0.51 प्रतिशत जीवांश कार्बन वाली बची है। पांच किलो बरगद के नीचे की मिट्टी, 10 लीटर गोमूत्र, 20 किलो गोबर, चार किलो गुड़, चार किलो बेसन ड्रम में डालकर 200 लीटर पानी में घोला जाता है।
प्रतिदिन सुबह व शाम लकड़ी से इसे हिलाते हैं। 15 से 20 दिन में खाद तैयार होती है। इसे एक हेक्टेयर खेत में डालकर जुताई की जाती है, फिर बोआई। उप कृषि निदेशक (शोध) के अनुसार इसके बाद किसी प्रकार के खाद व कीटनाशक की आवश्यकता नहीं होती। पौधे की जड़ें मजबूत रहती हैं। भरपूर पोषक तत्व मिलते हैं। बरसात व हवा से पौधे गिरते नहीं।