यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 06-02-2021
बेशक हिमाचल प्रदेश की सरकारें राज्य में लोगों को रोज़गार देने के बड़े-बड़े दावे करती रही हों, मगर सच्चाई इसके विपरीत है। पिछले 17 साल में प्रदेश में 0.8 फीसदी सरकारी नौकरियां घट गईं।
यह खुलासा पंद्रहवें वित्तायोग की रिपोर्ट में हुआ है, जिसके अनुसार वर्ष 2001 में जहां सरकारी रोज़गार 4.5 फीसदी था, वहीं 2017 में यह घटकर 3.7 फीसदी रह गया है। बताते है कि खर्चों को घटाने के लिए सरकार ने नियमित नौकरियों को अनुबंध में बदला है।
रिपोर्ट के अनुसार सरकारी नौकरियाँ घटने के बावजूद प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे आठ फीसदी लोग ही हैं, जो देश में न्यूनतम हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल में ग्रांट इन एड समेत वेतन पर प्रतिबद्ध खर्च कुल राजस्व व्यय का 80 प्रतिशत से घटाकर वर्ष 2018-19 में 72.7 प्रतिशत किया गया है।
बेशक वेतन पर खर्च घटा दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद इसकी प्रतिशतता अभी भी बहुत ज्यादा है, यह कुल राजस्व व्यय का 72.7 फीसदी है। पेंशन पर यह व्यय 16.9 फीसदी है। प्रदेश के प्रतिबद्ध खर्च में वर्ष 2011-12 के बीच 9.1 फीसदी वृद्धि हुईहै, जबकि उत्तरी-पूर्वी राज्यों में यह 11.5 फीसदी है।
वित्तायोग ने सिफारिश की है कि यह सही है कि हिमाचल प्रदेश सरकार पर प्रतिबद्ध खर्च को पिछले कुछ वर्षों में घटाया गया है, पर ब्याज का बोझ भी घटाने की जरूरत है।
आयोग ने सलाह दी है कि राज्य में वेतन के बोझ को और कम कर विकास पर खर्च बढ़ाने की दिशा में काम किया जाए। रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश पर कर्ज राज्य सकल घरेलू उत्पाद का 35 फीसदी है, जो कि बहुत ज्यादा है।
पिछले कुछ साल में फिस्कल रेस्पांसबिलिटी एंड बजट मैनेजमेंट (एफआरबीएम) एक्ट को नज़रअंदाज़ कर बहुत ज्यादा कर्ज लिया गया। सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के लिए सरकारी गारंटी वाले कर्जों को बंद किया जाना चाहिए।
हिमाचल प्रदेश उत्तरी-पूर्वी हिमालयी राज्यों के औसत दो प्रतिशत के बजाय पर ही कुल आय का 2.6 प्रतिशत भुगतान कर रहा है।रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में विभिन्न दुर्गम क्षेत्रों में अभी भी 7,628 राजस्व गांव सड़कों से नहीं जुड़ पाए हैं। प्रदेश में राष्ट्रीय औसत के अनुसार बहुत कम सड़क घनत्व है। यहां रेल, जलीय परिवहन की संभावना नगण्य है। यहां की जीवन रेखा केवल सड़कें हैं।