हिमाचल में दवाइयों के बाद अब इसके कच्चे माल पर भी क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य
प्रदेश में दवाइयों के बाद अब इसके कच्चे माल पर भी क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। लगातार दवाओं के सैंपल फेल होने, कच्चे माल की कालाबाजारी और नकली दवाओं के निर्माण के चलते ऐसा किया गया
यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन 23-01-2023
प्रदेश में दवाइयों के बाद अब इसके कच्चे माल पर भी क्यूआर कोड लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। लगातार दवाओं के सैंपल फेल होने, कच्चे माल की कालाबाजारी और नकली दवाओं के निर्माण के चलते ऐसा किया गया है।
बारकोड लगने से अब कच्चे माल में कोई भी मिलावट नहीं हो पाएगी। खरीदा गया कच्चा माल असली है या नकली क्यूआर कोड से इसकी पहचान आसानी से हो सकेगी।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में तैयार होने वाले कच्चे माल की निगरानी के लिए दवाओं के कच्चे माल (एपीआई) पर बारकोड अनिवार्य कर दिया है। दवा निर्माता कच्चे माल को थोक में खरीदते हैं। अगर इसमें गुणवत्ता नहीं हो तो उत्पाद को प्रभावित करती है।
बारकोडिंग नियम लागू होने के बाद अब नकली दवाओं की बिक्री पर भी काफी कमी आएगी। हिमाचल प्रदेश में 550 फार्मा कंपनियां हैं। इनमें सिपला, डॉ. रेड्डी, सनफार्मा, मेडिपोल फार्मा, नूतन फार्मा, पार्क फार्मा, टोरेंट, डेगॉन, इंडोको, डिजिटल फार्मा आदि प्रमुख हैं।
प्रदेश में प्रति वर्ष 25 से 30 हजार करोड़ का दवा उत्पादन होता है। दवा निर्माता कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर हैं। चीन से थोक विक्रेता कच्चा माल जमा कर लेते हैं, जो अपने हिसाब से दवा विक्रेता तक कच्चा माल पहुंचाते हैं। लेकिन बारकोड न होने से कई बार कच्चे माल में मिलावट होने का खतरा बना रहता है।
इसे देखते हुए अब कच्चे माल पर भी बारकोड लगा दिया है। भारत उद्योग संघ के हिमाचल के प्रभारी चिरंजीव ठाकुर व एचडीएमए के प्रदेश अध्यक्ष राजेश गुप्ता ने सरकार और विभाग के इस प्रयास की सराहना की है। इससे कच्चे माल में होने वाली मिलावट से राहत मिलेगी और माल सही मिलने से दवा के निर्माण में भी गुणवत्ता बढ़ेगी।
पहले दवाओं पर बारकोड था लेकिन अब इसे कच्चे माल पर भी लागू कर दिया गया है ताकि मिलावट होने की आशंका कम हो जाए। साथ ही नकली दवाओं के निर्माण में भी कमी आएगी। - नवनीत मरवाह, राज्य ड्रग नियंत्रक