हिमाचल में पहाड़ी गाय की नस्ल में न केवल सुधार बल्कि संरक्षण को भी मिलेगी मदद  

हिमाचल प्रदेश में पाई जाने वाली पहाड़ी गाय की नस्ल में न केवल सुधार होगा, बल्कि पहाड़ी गाय के संरक्षण को भी मदद मिलेगी। इसके लिए विभाग द्वारा करीब साढ़े चार करोड़ रुपए का एक प्रोजेक्ट तैयार

हिमाचल में पहाड़ी गाय की नस्ल में न केवल सुधार बल्कि संरक्षण को भी मिलेगी मदद  

यंगवार्ता न्यूज़ - नाहन      17-03-2023

हिमाचल प्रदेश में पाई जाने वाली पहाड़ी गाय की नस्ल में न केवल सुधार होगा, बल्कि पहाड़ी गाय के संरक्षण को भी मदद मिलेगी। इसके लिए विभाग द्वारा करीब साढ़े चार करोड़ रुपए का एक प्रोजेक्ट तैयार किया गया है, जिसे शीघ्र ही धरातल पर उतरा जाएगा। 

जानकारी मुताबिक विभाग द्वारा इस ब्रीड (नस्ल) का नाम गौरी दिया गया है। इनके संरक्षण और संवद्र्धन के लिए सिरमौर जिले के बागथन गांव में 4.64 करोड़ रुपए की लागत से 137.17 बीघा जमीन पर जल्द प्रोजेक्ट तैयार किया गया है, जिसकी पशुपालन निदेशालय स्तर पर प्रस्तावित बजट की मंजूरी मिल चुकी है। 

माना जा रहा है कि यदि हिमाचल सरकार व पशुपालन विभाग का प्रयास सफल रहा, तो हिमाचल प्रदेश में पाई जाने वाली पहाड़ी गाय की नस्ल में न केवल सुधार होगा, बल्कि पहाड़ी गाय के संरक्षण को भी मदद मिलेगी। प्रदेश भर से गिनी-चुनी 30 गाय और 20 बछडिय़ां रखी जाएंगी। 

इनसे बछड़े तैयार करके उनका सीमन पहाड़ी गायों की नस्ल सुधाल के लिए हर जगह पशुपालकों के लिए उपलब्ध होगा। प्रदेश में अभी पहाड़ी गाय की संख्या 7.59 लाख है, जो कुल पशुओं का 41.52 फीसदी है।

गौर हो कि हिमाचल की पहचान छोटे कद की गाय को राष्ट्रीय पशु आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो ने देश की मान्यता प्राप्त नस्लों की सूची में शामिल किया है। नेशनल ब्यूरो में देशी नस्ल की अन्य गउएं जैसे साहिवाल, रेड सिंधी, गिर सरीखी विख्यात नस्ल के साथ हिमाचल की पहाड़ी गाय भी शामिल हुई है। 

पहाड़ी गाय के बछड़े से तैयार सीमन का उपयोग अधिक प्रभावशाली होगा। साधारणत्या अभी तक पहाड़ी गाय को बाहरी सीमन लगाया जा रहा है, इससे जान को भी खतरा बना रहता है, क्योंकि कद-काठी छोटी होने और गर्भाश्य में भ्रृूण का आकार बड़ा होने से डिलीवरी के दौरान काफी दिक्कतें आती हैं। 

वहीं पशुपालन विभाग जिला सिरमौर उपनिदेशक डा. नीरू शबनम ने बताया कि 4.64 करोड़ रुपए की लगत से तैयार प्रोजेक्ट के तहत 50 गाय और बछडिय़ां रखी जाएंगी। यहां बछड़े तैयार करके उनके सीमन से नस्ल सुधारी जाएगी। इसको लेकर वैज्ञानिक स्तर पर शोध भी जारी है।