यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 21-06-2023
डायबिटीज के मामले में हिमाचल प्रदेश की स्थिति पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड से भी खराब है। चौंकाने वाली बात यह है कि हिमाचल प्रदेश के कठिन भौगोलिक हालात से अक्सर यह अनुमान लगाया जाता है कि यहां के लोगों को मैदानी प्रदेशों के निवासियों से कम मधुमेह होता होगा, पर असलियत इसके उलट है। इसकी वजह खानपान और दिनचर्या का सही नहीं होना है।
यह खुलासा द राष्ट्रीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर-इंडियाब क्रॉस सेक्शनल अध्ययन में किया गया है। आईसीएमआर की यह रिपोर्ट हाल ही में मेडिकल जरनल चिकित्सा पत्रिका 'द लांसेट डायबिटीज एंड एंडोक्रिनोलॉजी' में प्रकाशित हुई है। चिंता इस बात की है कि प्रदेश में नेशनल ऐवरेज से ज्यादा लोग डायबिटीज, हायपरटेंशन और मोटापा का शिकार हो गए हैं। आईसीएमआर की इस स्टडी को हिमाचल में करने वाले आईजीएमसी शिमला के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉ. जितेंद्र मोक्टा ने बताया कि प्रदेश में 13.5 प्रतिशत लोग डायबिटीज से ग्रसित है, जबकि राष्ट्रीय औसत 11.4 प्रतिशत की है।
उत्तर प्रदेश में सबसे कम 4.8 फीसदी और गोवा में सबसे ज्यादा 26.4 फीसदी लोग डायबिटीज से परेशान है। इसी तरह हिमाचल में 18.7 प्रतिशत लोग प्री डायबिटीज से जूझ रहे हैं। इसका राष्ट्रीय औसत 15.3 फीसदी है। मिजोरम में सबसे कम 6.1 फीसदी और सिक्किम में सर्वाधिक 31.3 फीसदी लोग प्री डायबिटीज से ग्रसित है। रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल के 35.3 प्रतिशत लोग उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) की बीमारी से परेशान है। इसकी नेशनल एवरेज 35.5 प्रतिशत है। हालांकि नेशनल एवरेज से मात्र 0.2 फीसदी कम है। मगर, पहाड़ जैसे मजबूत माने जाने वाले लोगों में यह दर अच्छी नहीं है।
हाइपरटेंशन से मेघालय में सबसे कम 24.3 फीसदी और पंजाब में 51.8 प्रतिशत लोग जूझ रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में 38.7 प्रतिशत लोग मोटापे के शिकार है, इसकी राष्ट्रीय औसत 28.6 प्रतिशत है। यानी नेशनल एवरेज की तुलना में हिमाचल में 10 फीसदी अधिक लोग मोटापे की गिरफ्त में आ गए है। झारखंड में सबसे कम 11.6 फीसदी तथा पुंडुचैरी में 53.3 प्रतिशत लोग इस बीमारी से परेशान है। हिमाचल में 56.1 फीसदी लोग पेट के मोटापे की समस्या जूझ रहे हैं, वहीं राष्ट्रीय औसत 39.5 प्रतिशत की है। पेट के मोटापे से झारखंड में सबसे कम 18.4 प्रतिशत तथा पुंडुचैरी में 61.2 फीसदी लोग इसकी गिरफ्त में है।
डॉक्टरों की माने तो हिमाचल में कुछ दशक पहले तक यह बीमारियां न के बराबर थी। अब स्कूली बच्चे भी टाइप 2 डायबिटीज के शिकार हो रहे है। तीनों बीमारियां तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि लोगों ने खेतों में काम करना छोड़ दिया है। गांव-गांव में सड़कों की कनेक्टिविटी बढ़ने से लोगों ने पैदल चलना छोड़ सा दिया है। लोग व्यायाम तक नहीं करते। पहले जिस काम के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता था, अब वहीं काम मशीनों की मदद से चंद मिनटों में किया जा रहा है।
आधुनिक जीवन शैली में लोगों का रुझान पौष्टिक खाने के बजाय जंक फूड की ओर बढ़ा है। लोगों ने अपने भोजन में ताजा फल-सब्जियों का सेवन करना कम किया है। पैकेट बंद फूड से मोटापा सहित मधुमेह की समस्या पैदा हो रही है। ऐसे खाने में पौष्टिक तत्वों से ज्यादा कार्बोहाइड्रेट्स और शुगर रहता है। चटपटा स्वाद देने के चलते फास्ट फूड बच्चों की पहली पसंद बना हुआ है। लंबे समय तक इन चीजों का सेवन और शारीरिक श्रम कम होने की वजह से बच्चों में रक्तचाप और मधुमेह की समस्या देखने को मिलती है।