गोबर से उपले नहीं अब बनाई जा रही लकड़ी, बचेगी पेड़ों की कटाई
यंगवार्ता न्यूज़ - देहरादून 20-10-20202
अभी तक आपने गोबर से बनी खाद और उपलों के बारे में सुना होगा, लेकिन काशीपुर की एक डेयरी में गोबर की लकड़ी तैयार की जा रही है। इससे जहां लकड़ी के लिए पेड़ों का कटान कम होगा, वहीं धुआं कम होने से पर्यावरण के लिए भी यह कम नुकसानदेह साबित होगी। मूल रूप से चौखुटिया, मांसी के रहने वाले मोहित काशीपुर में अपने परिवार के साथ रहते हैं।
करीब 11 वर्षों तक सऊदी अरब में बतौर प्रोडक्शन मैनेजर नौकरी करने के बाद 2017 में मोहित भारत लौटे और एक साल बाद गढ़ी इंद्रजीत में एक दूध डेयरी खोली। डेयरी का काम सही चलने पर मोहित ने गाय के गोबर का भी प्रयोग करने के लिए इंटरनेट पर खोजबीन शुरू की।
इसी बीच उन्हें जानकारी मिली कि पंजाब में बायो फ्यूल प्लांट नाम की एक मशीन का आविष्कार किया गया है, जिससे गोबर से लकड़ी तैयार की जाती है। मोहित ने मशीन खरीदी और गोबर की खाद से लकड़ी बनाने का काम शुरू कर दिया। मोहित ने बताया कि करीब तीन क्विंटल गोबर से एक क्विंटल लकड़ी तैयार की जा सकती है, जिसे 600 से 700 रुपये क्विंटल बेचा जा सकता है।
एक घंटे में चार फीट की 200 लकड़ियां तैयार होती हैं, जिन्हें जलौनी लकड़ी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। गोबर खाद से लकड़ी तैयार करने के लिए पहले दो दिन तक गोबर को सुखाया जाता है। नमी कम होने पर इसे बायो फ्यूल मशीन में डालकर रोटेड किया जाता है। इसके बाद हॉपर से लकड़ी तैयार होती है, जिसे फिर एक दिन सुखाया जाता है।
इसके बाद यह जलाने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाता है। मोहित ने बताया कि गोबर की लकड़ी का उत्पादन करने से पेड़ों के कटान में कमी आएगी। एक पेड़ काटने पर उससे करीब पांच से छह क्विंटल जलौनी लकड़ी मिलती है। अगर गोबर से छह क्विंटल जलौनी लकड़ी तैयार की जाए तो एक पेड़ को बचाया जा सकता है, इससे पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी। आम तौर पर लोग गोबर के उपले जलाने में इस्तेमाल करते हैं।
गोबर में मिथेन गैस की अधिकता होने के कारण इसे जलाने पर धुआं भी ज्यादा निकलता है, जबकि गोबर प्रकाष्ठ को होलो सिलिंडर की तरह तैयार किया जाता है। लकड़ी बीच में खोखली होने पर इसे जलाने पर हवा पास होती है और आसानी से जलने के साथ धुआं भी कम होता है।
गोबर प्रकाष्ठ बनाने के साथ मोहित अपनी डेयरी में रोजाना डेढ़ क्विंटल दूध का भी उत्पादन कर रहे हैं। इसके लिए मोहित ने एक आधुनिक गौशाला तैयार की है जिसमें साहिवाल, रैड सिंधी और एचएफ प्रजाति की 32 गाय हैं और रोजाना इनके दूध के साथ ही गोबर का भी इस्तेमाल हो रहा है।