ग्रीष्मोत्सव : हिल्स क्वीन के मालरोड पर लगी महानाटी , एक साथ थिरकीं 250 महिलाएं

अंतरराष्ट्रीय शिमला ग्रीष्मोत्सव के चौथे व अंतिम दिन मालरोड पर भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से महानाटी का आयोजन किया गया। मालरोड पर पुलिस गुमटी के पास करीब 250 महिलाएं नाटी पर एक साथ थिरकीं। रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों और सिर पर ढाठू पहनकर महिलाओं ने नाटी डालकर महिला सशक्तिकरण का संदेश दिया। पर्यटक भी महिलाओं के साथ कदम से कदम मिलाने पर विवश

ग्रीष्मोत्सव : हिल्स क्वीन के मालरोड पर लगी महानाटी , एक साथ थिरकीं 250 महिलाएं
 
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला  04-06-2023
 
अंतरराष्ट्रीय शिमला ग्रीष्मोत्सव के चौथे व अंतिम दिन मालरोड पर भाषा एवं संस्कृति विभाग की ओर से महानाटी का आयोजन किया गया। मालरोड पर पुलिस गुमटी के पास करीब 250 महिलाएं नाटी पर एक साथ थिरकीं। रंग-बिरंगे पारंपरिक परिधानों और सिर पर ढाठू पहनकर महिलाओं ने नाटी डालकर महिला सशक्तिकरण का संदेश दिया। पर्यटक भी महिलाओं के साथ कदम से कदम मिलाने पर विवश हो गए। पर्यटकों ने इस ऐतिहासिक पल को कैमरों में कैद किया। भाषा एवं संस्कृति विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से आयोजित महानाटी में जिला की विभिन्न आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं सहित ग्रामीण विकास विभाग से ठियोग , मशोबरा , बसंतपुर और टुटू की टीमों ने भी भाग लिया। इसके अलावा सांस्कृतिक कला मंच ठियोग ने वाद्य यंत्र वादन से दर्शकों का खूब मनोरंजन किया। 
 
 
गौर हो कि नाटी लोकनृत्य हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का एक प्रतिबिंब है। इस समृद्ध परंपरा के बिना देवभूमि का लोक जीवन अधूरा है। सूबे में क्षेत्र विशेष को दर्शाती वेशभूषा। हाथों में चंवर या रुमाल। बांसुरी, ढोल, नगाड़ों, रणसिंघा, करनाल और शहनाई की मधुर धुन पर झूमते और नाजुक अंदाज में घुटने झुका नाटी डालते पहाड़ के लोग हर पर्व में उल्लास के रंग भरते हैं। लोक नृत्य की इस विधा की विशेषता है कि यह हमेशा माला में नाची जाती है। मतलब, माला की गोलाई की तरह गोल-गोल घूम कर की जाती है। जिसमें अगुआ नृतक या नर्तकी के साथ पैरों और हाथों की गति का अनुसरण कर उसके पीछे सभी नाचते हैं। देवभूमि के इतिहास में नाटी की उत्पत्ति का कहीं स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। ऐसी मान्यता है कि नाटी प्राचीन काल में देवी-देवताओं के समय से चली आ रही है। 
 
 
हिमाचल में नाटी लोकनृत्य कई प्रकार के हैं। कुल्लू में कुल्लवी , लाहौल-स्पीति में लाहुली, पांगी में पंगवाली , भरमौर में गादी और डंडारस , किन्नौर में कायंग , शिमला में महासूवीं और चौहारी, सिरमौर में सिरमौरी समेत  मंडी के ऊपरी क्षेत्रों में सराजी, सुकेती, ढीली नाटी आदि नाचने की विशेष परंपरा है। मेले, धार्मिक आयोजन, शादी ब्याह, राजनीतिक जलसा या कोई भी खुशी का पल, नाटी के बिना सब फीका है। देवी-देवताओं को रिझाने के लिए उनकी पूजा के समय देवलु देवनाटी भी डालते हैं। बजंतरी देव ध्वनियां पारंपरिक वाद्य यंत्रों से छेड़ते हैं और देवलु देवरथों के साथ झूमते गाते सुख समृद्धि की कामना करते हैं। ऐसे में नाटी का नाम आते ही आंखों के सामने एक ताल पर झूमते पारंपरिक पोशाकों में मुस्कुराते पहाड़ी नजर आते हैं। 
 
 
इसमें कोई दो राय नहीं कि वर्तमान दौर में भी नाटी सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्य है। टोपी के ऊपरी हिस्से पर फूल लगाए जाते हैं। दूसरी ओर, महिलाएं चूड़ीदार, चोला, गहने पहनती हैं और रंगीन स्कार्फ से अपना सिर ढकती हैं, जिसे धाटू कहते हैं। बजंतरी वाद्य यंत्र से खास संगीत बजाते हैं। कुछ नाटियों में महिलाएं-पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी भाग ले सकते हैं। सभी एक-दूसरे का हाथ पकड़कर पैर आगे पीछे रखते हुए और लोक ध्वनियों की लय के अनुसार शरीर के अन्य अंगों को हिलाते हुए गोल चक्कर बनाकर नाटी करते हैं, जबकि कुछ में केवल पुरुष या केवल महिलाएं भाग लेती हैं।