चमोली में लोगों के विरोध के बाद भी एक नहीं तीन जल विद्युत परियोजनाओं को दी गई मंजूरी

चमोली में लोगों के विरोध के बाद भी एक नहीं तीन जल विद्युत परियोजनाओं को दी गई मंजूरी
यंगवार्ता न्यूज़ - देहरादून  11-02-2021 
 
चमोली आपदा से पहाड़ की अनदेखी का एक पहलू और उभर कर सामने आ गया। रैणी गांव के लोगों के विरोध को दरकिनार कर नीती घाटी में कुछ दूरी पर एक नहीं बल्कि तीन जल विद्युत परियोजनाओं को मंजूरी दी गई। यह अभी साफ नहीं है कि इन तीनों जल विद्युत परियोजनाओं के पर्यावरण पर संचयी प्रभाव का अध्ययन किया भी गया या नहीं।
 
किसी भी जल विद्युत परियोजना के लिए पर्यावरण अध्ययन रिपोर्ट जरूरी मानी जाती है। 2006 की अधिसूचना के मुताबिक जन सुनवाई इस रिपोर्ट का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसमें बांध से प्रभावित लोगों की राय शामिल की जाती है। प्रदेश में टिहरी बांध, पंचेश्वर बांध और अन्य बांधों को लेकर होने वाली जन सुनवाई मुआवज़े पर ही केंद्रित होकर रह जाती है।
 
लोगों को आर्थिक नुकसान का जिक्र इसमें हो जाता है, लेकिन उनके सामाजिक और सांस्कृतिक ताने बाने पर बात आगे नहीं बढ़ पाती। यह अनदेखी लगातार जारी है और अब पर्यावरण अध्ययन रिपोर्ट के नए ड्राफ्ट के नोटिफिकेशन में जन सुनवाई से ही किनारा कर लिया गया है। 
 
एक दूसरा पहलू परियोजनाओं के संचयी प्रभाव का है। यह अब स्वीकार किया जा रहा है कि कम अंतराल पर बनने वाली परियोजनाओं का पर्यावरण पर अलग तरह का प्रभाव पड़ता है। यह अभी साफ नहीं है कि ऋषिगंगा, एनटीपीसी और तपोवन विष्णु गाड़ परियोजनाओं के संचयी प्रभाव का अध्ययन किया भी गया या नहीं। चमोली में रविवार को आई आपदा से दो परियोजनाएं ध्वस्त हो गईं और विष्णुगाड़ परियोजना का विद्युत उत्पादन प्रभावित हुआ।
 
 पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन के मुताबिक उच्च हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों के सीमांत क्षेत्रों में करीब 75 जल विद्युत परियोजनाओं का प्रस्ताव है। उत्तराखंड से होकर एमसीटी या मेन सेंट्रल थ्रस्ट होकर गुजरता है। इसका मतलब यह हुआ कि एमसीटी का भूूकंप के लिहाज से भी संवेदनशील है। 2009 में आई नियंत्रण महालेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में प्रदेश में 48 जल विद्युत परियोजनाओं की समीक्षा की। कैग ने पाया कि वर्ष 1993 से लेकर 2006 तक 48 परियोजनाएं स्वीकृत की गईं और कुल पांच ही पूरी हो पाईं।
 
अधिकतर परियोजनाओं में पाया गया कि पर्यावरणीय अध्ययन बहुत ही कमजोर था। जिन्होंने पर्यावरणीय अध्ययन की संस्तुतियों का पालन नहीं किया, उन्हें दंडित भी नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति ने माना था कि उच्च हिमालयी क्षेत्र में बांध नहीं बनने चाहिए। इस आधार पर 24 बांधों के निर्माण पर रोक लगाई गई थी।
 
इसमें ऋषिगंगा-एक और दो, लाटा तपोवन आदि शामिल थे। ये बांध उसी क्षेत्र में हैं जहां आपदा आई है। उधर स्टेट एन्वायरमेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट अथारिटी के अध्यक्ष एसएस नेगी ने बताया कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की ओर से पर्यावरण अध्ययन रिपोर्ट का नया ड्राफ्ट अभी अधिसूचित नहीं हुआ है।
 
इतना जरूर है कि यह अब स्पष्ट है कि संचयित पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन अब जरूरी है। यह साफ नहीं है कि चमोली आपदा प्रभावित क्षेत्र की तीनों जल विद्युत परियोजनाओं का संचयी पर्यावरणीय प्रभाव का अध्ययन किया गया या नहीं। अगर अध्ययन हुआ है तो उसका कितना पालन हुआ। पर्यावरण की अनदेखी पहाड़ में विनाश का सबब बनती है यह तय है।