जीआई टैग मिलने के बाद लाल धान हिमाचल को देगा नई पहचान  

जीआई टैग मिलने के बाद लाल धान हिमाचल को देगा नई पहचान  

यंगवार्ता न्यूज़ - पालमपुर  10-06-2021

प्रदेश के लाल धान को जीआई टैग दिलवाने के प्रयास अंतिम चरण तक पहुंच गए हैं। इस विषय में सारी औपचारिकताएं व पूरा डाटा तैयार कर चेन्नई स्थित जीआई पंजीकरण कार्यालय को प्रेषित कर दिया गया है। लाल धान यानी छोहारटू हिमाचल के चार जिलों कांगड़ा, चंबा, कुल्लू और शिमला में होता है। 

बाजार में इस चावल की कीमत साढ़े चार सौ रुपए से लेकर पांच सौ रुपए किलो तक होती है। यदि प्रदेश कृषि विवि अनुसंधान निदेशालय की ओर से भेजा गया आवेदन जीआई पंजीकरण कार्यालय की कसौटी पर खरा उतरता है, तो प्रदेश के जेपोनिका रेड राइस को जीआई टैग मिल जाएगा। 

जीआई टैग मिलने के बाद यह धान हिमाचल को नई पहचान देगा। हिमाचल में पाए जाने वाले धान की क्वालिटी बेहद खास है। इसमें छोहारटू के अलावा कुल्लू का जाटू, देवल व मताली प्रमुख है। इसी तरह चंबा का करड और सुकारा व कांगड़ा का देशी धान काली झीणी व बेगमी प्रमुख हैं।

शिमला जिला के छोहारा व रनसार घाटी में लगभग पांच सौ हेक्टेयर पर छोहारटू धान उगाया जाता है। यह प्रदेश की पहली किस्म है, जिसे 2013 में कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण भारत सरकार के तहत पंजीकृत करवाया गया है।

गौर रहे कि प्रदेश कृषि विवि के कुलपति प्रो. हरिंद्र कुमार चौधरी लाल धान के अलावा भी प्रदेश के कई उत्पादों को जीआई टैग दिलवाने को लेकर वैज्ञानिकों को प्रेरित कर रहे हैं।

इस कड़ी में अब मलां स्थित धान अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों ने जेपोनिका रेड राइस के जीआई टैग के लिए आवेदन कर दिया है। 

भौगोलिक संकेतक का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिए किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार लाल चावलों में पोषक तत्त्व, लोहा, जस्ता, एंटीआक्सीडेंट तथा विटामिन पाए जाते हैं। यह धान रक्तचाप, बुखार, श्वेत प्रदर व गर्भावस्था से संबंधित रोगों में लडऩे में सहायक हैं। 

प्रो हरिंद्र कुमार चौधरी कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय ने कहा कि प्रदेश की पारंपरिक फसलों व अन्य उत्पादों के लिए भौगोलिक संकेतक प्राप्त करने के कार्यों में तेजी लाई जा रही है।

इस कड़ी में मलां स्थित धान अनुसंधान केंद्र से जेपोनिका रेड राइस के जीआई टैग के लिए आवेदन किया गया है। (एचडीएम)