न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली 11-10-2020
जिंदगी की असली उड़ान बाकी है, जिंदगी के कई इम्तिहान बाकी है, अभी तो नापी है मुट्ठी पर जमीन हमने, अभी तो खुला असमान बाकी है...यह पंक्तियां अपनी समझदारी व देशभक्ति की बदौलत युद्ध सेवा पदक पाने वाली पहली महिला अंबाला निवासी स्क्वाड्रन लीडर मिंटी अग्रवाल पर बिल्कुल सटीक बैठती हैं।
देशभक्ति का जुनून मिंटी में इस कद्र भरा हुआ है कि पढ़ाई में होशियार होने के कारण कॉलेज में से ही इंडिया की टॉप कंपनियों में से एक इंफोसिस यानी आईटी कंपनी पुणे में बतौर प्रोग्रामर प्लेसमेंट हो गई थी। ढाई लाख का सलाना पैकेज मिलने पर करीब एक साल काम भी किया, लेकिन बचपन से देशभक्ति व एयरफोर्स में जाने की जगी अलख कहीं न कहीं उसे इन सब चीजों से संतुष्ट नहीं कर रही थी।
बस फिर क्या था मिंटी ने अपनी पैकेज को छोड़कर आईएएस की तैयारी शुरू कर दी। यहीं मोड़ था कि जिसने मिंटी को इस सफलता की ओर धकेल दिया। काफी समय घर पर बैठकर आईएएस की तैयारी की। इसी बीच एयरफोर्स की भर्ती आते ही मिंटी ने अपनी किस्मत आजमाने का फैसला लिया और भर्ती होकर अपने बचपन के सपने को पूरा किया।
मिंटी अग्रवाल के भाई अरविंद्र अग्रवाल ने बताया कि मिंटी ने एयरफोर्स की भर्ती में हिस्सा तो ले लिया, लेकिन मन में कहीं न कहीं डर था कि वो शायद एयरफोर्स का हिस्सा न बन सके। कुछ समय पता चला कि पूरे नार्थ इंडिया में केवल चार बच्चे पास हुए है। मिंटी को लगता था कि वो कहां इन बच्चों में हो सकती है। जैसे ही पता चला कि वो उन बच्चों में शामिल है तो पूरे परिवार में खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
देहरादून में साक्षात्कार देने के बाद मिंटी ने एसएसबी क्लीअर कर एयरफोर्स से जुड़ गई। अरविंद का कहना था कि उनके पिता रविंद्र कुमार अग्रवाल ऑर्डनरी ऑफिसर से रिटायर्ड है इसलिए बचपन से घर में एयरफोर्स की वर्दी व वैसा की माहौल रहता था। मिंटी अग्रवाल ने भले ही अपना सपना पूरा कर लिया हो लेकिन वह दूसरों को भी इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहती है।
अरविंद्र ने बताया कि जब भी वह छुट्टी पर घर आती है तो अपनी रिश्तेदारी व आस पड़ोस के युवाओं व बच्चों में भी एयरफोर्स के अंदर जाने का जुनून भरती है और उन्हें एयरफोर्स की खूबियों के बारे में अवगत करवाती है।