जारी रहेगा सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण, शीर्ष अदालत ने सुनाया फैसला 

सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया है। 5 न्यायाधीशों में से 3 ने आर्थिक रूप कमजोर वर्ग ( EWS ) से आरक्षण के सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना

जारी रहेगा सामान्य वर्ग के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण, शीर्ष अदालत ने सुनाया फैसला 

न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली     07-11-2022

सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया है। 5 न्यायाधीशों में से 3 ने आर्थिक रूप कमजोर वर्ग ( EWS ) से आरक्षण के सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना है। यानी यह आरक्षण जारी रहेगा। चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रविंद्र भट्ट ने EWS के खिलाफ फैसला सुनाया है, जबकि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में फैसला सुनाया है। 

जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि केवल आर्थिक आधार पर दिया जाने वाला आरक्षण संविधान के मूल ढांचे और समानता के अधिकार का उल्लंघन नहीं करता है। आरक्षण 50 फीसदी तय सीमा के आधार पर भी EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, क्योंकि 50% आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है। जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि मैं जस्टिस दिनेश माहेश्वरी से सहमत हूं और यह मानती हूं कि EWS आरक्षण मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है और न ही यह किसी तरह का पक्षपात है। 

यह बदलाव आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के तौर पर ही देखना जाना चाहिए। इसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है। जस्टिस पारदीवाला कहा कि जस्टिस माहेश्वरी और जस्टिस बेला त्रिवेदी से सहमत होते समय मैं यह कहना चाहता हूं कि आरक्षण की अंत नहीं है। इसे अनंतकाल तक जारी नहीं रहना चाहिए , वरना यह निजी स्वार्थ में तब्दील हो जाएगा। आरक्षण सामाजिक और आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है। यह अभियान 7 दशक पहले शुरू हुआ था। 

डेवलपमेंट और एजुकेशन ने इस खाई को कम करने का काम किया है। जबकि जस्टिस रवींद्र भट कि आर्थिक रूप से कमजोर और गरीबी झेलने वालों को सरकार आरक्षण दे सकती है और ऐसे में आर्थिक आधार पर आरक्षण अवैध नहीं है। लेकिन इसमें से एससी-एसटी और ओबीसी को बाहर किया जाना असंवैधानिक है। मैं यहां विवेकानंद जी की बात याद दिलाना चाहूंगा कि भाईचारे का मकसद समाज के हर सदस्य की चेतना को जगाना है। ऐसी प्रगति बंटवारे से नहीं, बल्कि एकता से हासिल की जा सकती है। 

ऐसे में EWS आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपात है। ये समानता की भावना को खत्म करता है। ऐसे में मैं EWS आरक्षण को गलत ठहराता हूं। चीफ जस्टिस यूयू ललित  कि मैं जस्टिस रवींद्र भट के विचारों से पूरी तरह से सहमत हूं। अंत में सामान्य वर्ग के गरीबों को दिया जाने वाला 10 प्रतिशत आरक्षण जारी रहेगा। सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों में से 3 जजों ने इसे सही ठहराया। 

जस्टिस रवींद्र भट और सीजेआई यूयू ललित अल्पमत में रहे। केंद्र की ओर से पेश तत्कालीन अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुनवाई के दौरान कहा था कि आरक्षण के 50 प्रतिशत बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा। उन्होंने कहा था कि 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने ही फैसला दिया था कि 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए ताकि बाकी 50 प्रतिशत जगह सामान्य वर्ग के लोगों के लिए बची रहे। 

यह आरक्षण 50 प्रतिशत में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है। यह बाकी के 50 प्रतिशत वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है। बेंच ने मामले की साढ़े छह दिन तक सुनवाई के बाद 27 सितंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। सीजेआई ललित 8 नवंबर यानी मंगलवार को रिटायर हो रहे हैं। 

इसके पहले 5 अगस्त 2020 को तत्कालीन सीजेआई एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामला संविधान पीठ को सौंपा था। सीजेआई यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने कुछ अन्य अहम मामलों के साथ इस केस की सुनवाई की।