पैरालिसिस से पीड़ित असहाय पिता ने मासूम बेटियों को भेजा आश्रम, सरकार-प्रशासन से मदद की दरकार
किसी भी मां बाप के लिए अपने बच्चों को खुद से दूर करना सबसे मुश्किल होता है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के झंझीड़ी इलाके में बीमार पिता मोती लाल को अपने दो बच्चियों को खुद से दूर करना पड़ा. दो साल पहले मोती लाल को पैरालिसिस का अटैक पड़ा
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 19-12-2022
किसी भी मां बाप के लिए अपने बच्चों को खुद से दूर करना सबसे मुश्किल होता है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के झंझीड़ी इलाके में बीमार पिता मोती लाल को अपने दो बच्चियों को खुद से दूर करना पड़ा. दो साल पहले मोती लाल को पैरालिसिस का अटैक पड़ा। इसके दो महीने बाद ही पैरालिसिस होने की वजह से मोतीलाल का रोजगार चला गया।
कुदरत ने ऐसा खेल रचा कि दो महीने बाद ही धर्मपत्नी की भी मौत हो गई। मोतीलाल की तीन बेटियां और एक बेटा है। पहले बच्चों के सिर से बीमार पिता का दर्द और फिर सिर से मां का साया उठ जाना बच्चों के लिए अपार दु:ख लेकर आया। मोतीलाल के आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि वे न तो अपनी दवाइयां ले सकते हैं और न ही मकान का किराया दे पा रहे हैं।
पैरालिसिस से पीड़ित बीमार मोती लाल ने कहा कि जब तक वह स्वस्थ थे, तब तक घर परिवार का गुजर-बसर आसानी से हो रहा था, लेकिन अब हाथ पैर साथ नहीं देते. 2 साल तक जैसे तैसे घर का गुजारा हुआ। बच्चों की मदद से ही घर पर सब काम करते हैं, लेकिन पैरालिसिस होने की वजह से रोजगार के साधन नहीं हैं।
बता दें कि मोती लाल के चार बच्चे हैं. जिनमें तीन बेटियां और एक बेटा है. बड़ी बेटी की उम्र 14 साल, दूसरी बेटी की उम्र 10 साल, तीसरी बेटी की उम्र 7 साल जबकि सबसे छोटे बेटे की उम्र 6 साल है।
बेहद हैरानी की बात है कि शिमला शहर में ही रहने वाले मोती लाल को सरकार-प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती। न तो उन्हें सहारा योजना के तहत पेंशन मिलती है और न ही उनका हिम केयर कार्ड बना है। दवाई लेने के लिए भी शिमला से दूर जाना पड़ता है. टैक्सी से आने-जाने और फिर दवाई का खर्च इतना है कि वे हर महीने इतना पैसा नहीं खर्च सकते।
मुश्किल के समय में मोती लाल के भाइयों का भी उन्हें कोई साथ नहीं मिलता. सिर्फ पड़ोसी ही मदद के लिए आगे आते हैं. मोती लाल जिस मकान में रहते हैं वहां मकान मालिक ने उनसे बीते एक साल से किराया तक नहीं लिया है।
मोती लाल को जरूरत है सरकार-प्रशासन की मदद की दरकार है उन योजनाओं के लाभ की, जिसके वे हकदार हैं. जन हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार को मोती लाल की मदद के लिए आगे आना चाहिए, ताकि वह जल्द से जल्द स्वस्थ हो और एक बार फिर बच्चों को अपने पास बुला सकें।