न्यूज़ एजेंसी - वाराणसी 01-06-2021
देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर जारी है और तीसरी का खतरा मंडरा रहा है। कोरोना के खिलाफ में जंग में इकलौता हथियार कोविड वैक्सीन की भी किल्लत है। ऐसे में भारत सरकार इस पर भी रिसर्च करने वाली है कि क्या वैक्सीन की एक डोज ही काफी है।
इसके इतर ऐसी रिसर्च भी सामने आ रहीं हैं, जिनमें ये दावा किया जा रहा है कि अगर कोरोना हो चुका है, तो पर्याप्त एंटीबॉडीज बनाने के लिए वैक्सीन की एक डोज ही काफी है। हालांकि, इस थ्योरी पर विशेषज्ञों ने सवाल उठाए हैं। देश में दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान जारी है। वैक्सीन की किल्लत कोविड टीकाकरण में बाधा बन खड़ी हुई है।
इसके इतर वैक्सीन को लेकर डर, अफवाह और वैक्सीन के असरदार होने को लेकर जबरदस्त कन्फ्यूजन बना हुआ है। इन सबके बीच भारत में कोवैक्सीन, कोविशील्ड और स्पूतनिक वी वैक्सीन लगाईं जा रहीं हैं। इनमें भी सबसे ज्यादा डोज कोविशील्ड की लग रहीं हैं।
देश में अब तक लगी कुल वैक्सीन डोज में से 90 फीसदी से ज्यादा टीके कोविशील्ड के लगाए गए हैं। वहीं अब भारत सरकार अगले कुछ महीनों में इस बात पर रिसर्च करेगी कि क्या कोविशील्ड की सिंगल डोज कोरोना से रक्षा के लिए काफी है।
गौर हो कि कोविड की सभी वैक्सीन की अलग-अलग डोज में समय का एक निश्चित अंतर होता है और ये अंतर इसलिए होता है ताकि अच्छी मात्रा में एंटीबॉडी बन सके। कोविशील्ड को लेकर अलग-अलग रिसर्च आईं और वैक्सीन की डोज के बीच का गैप कई बार बढ़ाया गया। माना जा रहा है कि जो व्यक्ति कोरोना से बचा हुआ है, उसे दो डोज लगाने पर ही पर्याप्त एंटीबॉडी बनेगी।
भारत में 4 करोड़ 30 लाख से ज्यादा लोगों ने दोनों डोज ली हैं। इनमें एंटीबॉडी भी बनी है, लेकिन बहुत से ऐसे केस भी होते हैं, जिनमें एंटीबॉडी पर्याप्त मात्रा में नहीं बनती। इस बीच, साइंस जर्नल नेचर में पब्लिश हुई एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि कोरोना से ठीक हुए लोगों में वैक्सीन की एक डोज काफी है यानी उन्हें बूस्टर या दूसरी डोज लगाने की जरूरत ही नहीं है।
वैज्ञानिक का कहना है कि कोरोना से ठीक हुए लोगों में एंटीबॉडी प्राकृतिक रूप से बनती है और अगर कोरोना से रिकवर हुए लोगों को वैक्सीन का एक डोज भी मिल जाए तो इम्यूनिटी लंबे समय तक बनी रहती है। इसके साथ ही बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) के वैज्ञानिकों ने भी अपनी स्टडी में पाया है कि कोरोना से ठीक हुए लोगों के लिए वैक्सीन की एक डोज ही पर्याप्त है।
बीएचयू के वैज्ञानिकों ने 20 लोगों पर अध्ययन किया है और इस रिसर्च को पब्लिश करने के लिए भेजा है। संस्थान के वैज्ञानिकों ने अपनी रिपोर्ट को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से साझा किया है और ये सुझाव दिया है कि कोरोना से ठीक हो चुके लोगों को वैक्सीन की एक डोज ही दी जाए। इससे वैक्सीन की सिंगल पर अब सवाल उठता है कि ऐसे दावों का पूरा सच क्या है? क्या कोरोना से ठीक हुए मरीजों को वैक्सीन की दूसरी डोज की जरूरत ही नहीं है।
हमें ये समझना चाहिए कि डोज का निर्धारण किस आधार पर होता है और ये कैसे पता लगेगा कि वैक्सीन का एक डोज ही पर्याप्त है। वैज्ञानिक प्रोफेसर गिरिधर बाबू ने कहा कि यह बिल्कुल भी अच्छा विचार नहीं है, यह सुझाव देने के लिए कोई डेटा नहीं है कि जनसंख्या स्तर पर मृत्यु दर या गंभीर बीमारी के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा प्रदान करने के लिए एक खुराक ही काफी है, उपलब्ध साक्ष्य बताते हैं कि टीकों की दो खुराक मौतों को रोकने में प्रभावी है।
बाबू ने कहा कि कमजोर आबादी के लिए दोनों खुराक की आवश्यकता है, दी गई समय सीमा में यदि हम दो डोज लेने में असमर्थ हैं तो शायद हम एक खुराक को कवर कर सकते हैं, लेकिन दूसरी खुराक को कुछ समय बाद कम से कम 12 सप्ताह की अवधि में दिया जाना चाहिए।