न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली 16-06-2021
कोवैक्सिन बनाने में गाय के बछड़े के सीरम का इस्तेमाल किया जाता है। इसके लिए 20 दिन से भी कम के बछड़े की हत्या की जाती है। ये दावा कांग्रेस के नेशनल कोऑर्डिनेटर गौरव पांधी ने बुधवार को किया है। पांधी ने एक आरटीआई के जवाब में मिले दस्तावेज शेयर किए।
उन्होंने दावा किया है कि यह जवाब विकास पाटनी नाम के व्यक्ति की आरटीआई पर सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन ( सीडीएससीओ ) ने दिया है। बछड़े के सीरम का उपयोग विरो सेल्स के रिवाइवल प्रोसेस के लिए किया जाता है। इसका इस्तेमाल कोवैक्सिन बनाने के लिए किया जा रहा है।
पांधी ने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार ने मान लिया है कि भारत बायोटेक की वैक्सीन में गाय के बछड़े का सीरम शामिल है। यह बहुत बुरा है। इस जानकारी को पहले ही लोगों को बताया जाना चाहिए था। इससे पहले इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ( आईसीएमआर ) के रिसर्च पेपर में भी ये बात बताई गई थी कि कोवैक्सिन बनाने के लिए नवजात पशु के ब्लड का सीरम उपयोग किया जाता है। इसे पहली बार किसी वैक्सीन में उपयोग नहीं किया जा रहा है।
यह सभी बायोलॉजिकल रिसर्च का जरूरी हिस्सा होता है। रिसर्च में दावा किया गया था कि कोवैक्सिन के लिए नवजात बछड़े के 5 प्रतिशत से 10 फीसदी सीरम के साथ डलबेको के मॉडिफाइड ईगल मीडियम ( डीएमईएम ) को इस्तेमाल किया जाता है।
डीएमईएम में कई जरूरी पोषक होते हैं, जो सेल को बांटने के लिए जरूरी होते हैं। घोड़े के पैरों के खुर की तरह दिखने वाले जीव को हॉर्सशू क्रैब कहा जाता है। 450 मिलियन यानी 45 करोड़ साल से अमेरिका और साउथ एशिया के तटों पर पाए जाने वाले इस जीव के खून का इस्तेमाल दवाओं में किया जाता है।
हॉर्सशू क्रैब का खून कोविड-19 की वैक्सीन डेवलप करने के काम भी आ रहा है। इनका नीला खून ये सुनिश्चित करने में मदद करता है कि कहीं ड्रग में कोई खतरनाक बैक्टीरिया तो नहीं है। हॉर्सशू क्रैब को लिविंग फॉसिल यानी जीवित खनिज कहा जाता है। क्योंकि 45 करोड़ सालों के दौरान, धरती पर आई जिन आपदाओं ने डायनासोर तक को खत्म कर दिया, उन्हें झेलकर हॉर्सशू क्रैब आज तक जीवित बचे हुए हैं। इन्हें प्राचीन इम्यून सिस्टम वाला जीव भी कहा जाता है।