न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली 04-03-2021
दिल्ली हाईकोर्ट ने आज एक याचिका की सुनवाई करते हुए सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया व भारत बायोटेक को कोविशील्ड और कोवैक्सीन टीके को लेकर अपनी निर्माण क्षमता का खुलासा करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने कोविड का टीका बाहर भेजे जाने पर भी सख्त टिप्पणी की है।
अदालत ने कहा, कोविड-19 टीके दान दिए जा रहे हैं, अन्य देशों को बेचे जा रहे हैं। अपने लोगों का टीका करण नहीं किया जा रहा है। अत्यावश्यकता की भावना अपेक्षित है। उच्च न्यायालय ने केंद्र से फिलहाल कोविड19 टीका करण के लिए व्यक्तियों के वर्ग पर सख्त नियंत्रण रखने के तर्क के बारे में भी पूछा है।
यही नहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार से भी कहा कि वह अदालत परिसरों में चिकित्सा केंद्रों का निरीक्षण करे और बताए कि क्या वहां पर कोविड-19 टीका करण केंद्र स्थापित करने की संभावना है।
केंद्र सरकार ने चरणबद्ध तरीके से टीका करण को मंजूरी दी है। इसके तहत पहले चरण में चिकित्सा कर्मियों तथा अग्रिम मोर्चे के कर्मियों का टीका करण किया गया है।
अब दूसरे चरण में 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों का टीका करण किया जा रहा है। इसके अलावा 45 वर्ष से 60 साल की आयु वर्ग के उन लोगों को टीका दिया जा रहा है, जिन्हें पहले से कोई गंभीर बीमारी है।
न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि दोनों संस्थानों सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक के पास अधिक मात्रा में टीका उपलब्ध कराने की क्षमता है, लेकिन ऐसा लगता है कि वे इसका पूरा फायदा नहीं उठा रहे हैं।
पीठ ने कहा कि हम इसका पूरी तरह से उपयोग नहीं कर रहे हैं। हम या तो इसे अन्य देशों को दान कर रहे हैं या उन्हें बेच रहे हैं और अपने लोगों को टीका नहीं दे रहे हैं। अत: इस मामले में जिम्मेदारी और तात्कालिकता की भावना होनी चाहिए।
अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह अदालती परिसरों में उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का निरीक्षण करे और बताए कि क्या इन सुविधाओं में कोविड-19 टीका करण केंद्र स्थापित किए जा सकते हैं।
गौर हो कि अदालत दिल्ली बार काउंसिल की एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें न्यायाधीशों, अदालत के कर्मियों और वकीलों समेत न्याय प्रक्रिया से जुड़े सभी लोगों को अग्रिम मोर्चे का कर्मी वर्गीकृत करने की मांग की गई है।