ब्रह्मर्षि श्रीकुमार स्वामी के प्रवचनों से संगत निहाल, भक्तों को दिया बीज मंत्र

भगवान ब्रह्मा ने मां दुर्गा की स्तुति इस प्रकार की है कि हे देवी तुम्हीं स्वाहा, तुम ही वषट्कार हो, स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं और तुम ही जीवनदायिनी स्वधा हो। तुम ही महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो

ब्रह्मर्षि श्रीकुमार स्वामी के प्रवचनों से संगत निहाल, भक्तों को दिया बीज मंत्र

यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन     08-08-2022

भगवान ब्रह्मा ने मां दुर्गा की स्तुति इस प्रकार की है कि हे देवी तुम्हीं स्वाहा, तुम ही वषट्कार हो, स्वर भी तुम्हारे ही स्वरूप हैं और तुम ही जीवनदायिनी स्वधा हो। तुम ही महाविद्या, महामाया, महामेधा, महास्मृति, महामोहरूपा, महादेवी और महासुरी हो। तुम ही तीन गुणों को उत्पन्न करने वाली सबकी प्रकृति हो। भयंकर कालरात्रि, महारात्रि, मोहरात्रि तुम्ही हो। 

तुम्हीं श्री, ईश्वरी, ह्री और बोधस्वरूपा बुद्धि हो, तुम खड्गधारिणी, शूलधारिणी, सौम्य और सौम्यतर हो। जितने भी सौम्य और सुंदर पदार्थ हैं, उन सबकी अपेक्षा तुम अधिक सुंदरी हो। पर और अपर सबसे परे रहने वाली परमेश्वरी तुम्हीं हो। ये उद्गार ब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सोलन में आयोजित प्रभु कृपा दुख निवारण समागम में व्यक्त किए। 

ब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने कहा कि मां दुर्गा अविनाशी, अनंत हैं। ऐसा कोई स्थान नहीं है,जहां मां नहीं हैं। ये चराचर ब्रह्मांड मां में स्थित है। कण-कण में मां नहीं, कण-कण मां में है। ऐसा कोई भी नहीं है जो मां दुर्गा में न हो। मां दुर्गा ही साक्षात ब्रह्म हैं। 

मां दुर्गा के पाठ से धन- धान्य, यश-कीर्ति, ऐश्वर्य, मान- प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है। जब तक पृथ्वी काननों सहित खड़ी है, तब तक साधक की पुत्र-पौत्र आदि संतान परंपरा बनी रहती है।

पाठ की कृपा से साधक कहीं भी पराजित नहीं होता है। मां की कृपा का पात्र होने पर वही पार्षद होता है। पाठ करने वाले को कोई भी रोग नहीं होता है। भूत-प्रेत, डाकिनी, शाकिनी व अन्य नकारात्मक शक्तियां पाठ करने वाले को देखकर ही भाग जाती हैं। साधक अंतत: पाठ के प्रभाव से मोक्ष को प्राप्त करता है। 

ब्रह्मर्षि श्री कुमार स्वामी जी ने इस सारे ब्रह्मांड की स्वामिनी मां दुर्गा हैं। मां दुर्गा भगवती ने ही सारी सृष्टि को बनाया है। इस सृष्टि को उमंग, तरंग, आनंद तथा सुख प्रदान करने वाली मां भगवती ही हैं। इन्हीं की कृपा से सारे जीवों में चेतना है। मां ने ही भगवान ब्रह्मा, विष्णु तथा शिव को बनाया है। मां भगवती में हम सब हैं, जैसे समुद्र में मछलियां होती हैं। कृष्णपक्ष की अष्टमी और चतुर्दशी को अपना सर्वस्व समर्पित करके प्रसाद में ग्रहण करना चाहिए। 

पाठ को निष्कीलन, उत्कीलन व शापोद्धार करके ही जाप करना चाहिए। भगवान श्री लक्ष्मी नारायण धाम के महासचिव श्री गुरुदास जी ने कहा कि आज जो कुछ भी हो रहा है उसको परम पूज्य सद्गुरुदेव जी मात्र 12 वर्ष की आयु में ही मयखाना महाग्रंथ में लिख दिया था जो आज भी प्रासंगिक है।