शोधकर्ताओं के अध्ययन में खुलासा : सैकड़ों वनस्पतियों के औषधीय गुणों को नहीं जानती नई पीढ़ी
हिमाचल प्रदेश की नई पीढ़ी को सैकड़ों वनस्पतियों के औषधीय गुणों की पहचान नहीं है। ऐसे में समय रहते इन वनस्पतियों का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया तो ये अपनी पहचान खो देंगी
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 01-0-2022
हिमाचल प्रदेश की नई पीढ़ी को सैकड़ों वनस्पतियों के औषधीय गुणों की पहचान नहीं है। ऐसे में समय रहते इन वनस्पतियों का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया तो ये अपनी पहचान खो देंगी।
यह खुलासा शूलिनी विश्वविद्यालय सोलन के बायोलोजिकल और पर्यावरण विज्ञान स्कूल और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) समेत अन्य संस्थानों के अध्ययन में हुआ है।
यह अध्ययन सुनील पुरी, ममता ठाकुर, सोनिया राठौर, सूरज प्रकाश आदि विशेषज्ञों और शोधार्थियों ने किया है। इस शोध को एक स्थानीय जर्नल में सामने लाया गया है। यह अध्ययन सोलन जिला के धर्मपुर क्षेत्र में किया गया है। अध्ययन केंद्र में 115 औषधीय वनस्पतियों का दस्तावेजीकरण किया गया। इनमें 38 पेड़, 37 औषधियां, 34 झाड़ियां, पांच बेलें और फर्न (घास) है।
इन वनस्पतियों के औषधीय इस्तेमाल की जानकारी प्रश्नावली, विचार-विमर्श और व्यक्तिगत साक्षात्कार के माध्यम से एकत्र की गई। इन वनस्पतियों को बोटानिकल और स्थानीय नामों से व्यवस्थित किया गया। धर्मपुर क्षेत्र के स्थानीय ग्रामीण इनका प्राथमिक स्वास्थ्य निदान के लिए इस्तेमाल करते हैं।
इससे विभिन्न रोगों का उपचार होता है और ऐसा कई वर्षों से किया जा रहा है। हालांकि, इन वनस्पतियों के रोगों के निदान की सूचना का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है। ग्रामीणों से यह भी जानकारी मिली कि नई पीढ़ी को इसकी जानकारी में कोई रुचि नहीं है। इसका कारण समाज में आधुनिकीकरण का होना है। ऐसे में पारंपरिक औषधीय गुणों वाली दवाओं के दस्तावेजीकरण की अत्यंत जरूरत है।
इस अध्ययन में 25 से 75 साल के लोगों से जानकारी हासिल की गई। 114 लोगों में से 76 पुरुषों और 38 महिलाओं से संवाद किया गया। यह पाया गया कि पुरुषों को महिलाओं की तुलना में इसका ज्यादा ज्ञान था।
अधिकतर वनस्पतियों में पत्तियों, जड़ों का ज्यादा इस्तेमाल रोगों के निदान के लिए अधिकतर वनस्पतियों की पत्तियों का अधिक इस्तेमाल होता है। पूरे पौधे, फूलों, तने, बीज, फल, कोंपलों आदि का भी उपयोग होता है।