सड़क न होने से सेना घोड़ों, खच्चरों पर सामग्री ढोने को मजबूर
यंगवार्ता न्यूज़ - किन्नौर 14-09-2020
भारत और चीन अधिकृत तिब्बत सीमा से सटे इलाकों में वर्षों बाद भी व्यवस्था में सुधार नहीं हो पाया है। सीमा से सटे इलाकों में सेना का बेड़ा तो बढ़ा दिया गया है, लेकिन मूलभूत सुविधाओं में कोई इजाफा नहीं हो पाया है।
आईटीबीपी और सेना के जवानों को अपने बेस कैंप पहुंचने के लिए घोड़े, खच्चरों का सहारा लेना पड़ रहा है। जवानों को पीठ पर भी ढुलाई कर खाद्य व अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचानी पड़ रही है।
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण तिब्बत सीमा से सटे सीमावर्ती क्षेत्र कुन्नोचारंग, छितकुल, नेसंग और पूह के डुबलींग ऋषि डोगरी तक सड़कों का निर्माण नहीं हो पाया है। चीन के साथ भारत के बढ़ते विवाद को देखते हुए इन दुर्गम क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण होना बेहद जरूरी है।
केंद्र और प्रदेश सरकार सहित सीमा सड़क संगठन की सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़कों की डीपीआर बनाने की योजना कागजों और फाइलों तक ही सिमट कर रह गई है।
ऐसे में किन्नौर के इन दुर्गम क्षेत्रों की सरहदों पर तैनात भारतीय तिब्बत सीमा पुलिस बल और सेना के जवानों को आधुनिक दौर में भी अपनी पोस्टों तक सामग्री पहुंचाने के लिए जानवरों का सहारा लेना पड़ रहा है, या फिर पीठ पर ढोकर अपना सामान पहुंचाना पड़ रहा है।
वहीं सीमा सड़क संगठन के ओसी पोवारी किन्नौर डीके राघव ने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में नई सड़कें बनाने को लेकर संगठन गंभीर है। सड़कों को खोलने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।
पूह प्रधान सुमन साना, उपप्रधान सुशील साना, नेसंग के प्रधान अशोक कुमार नेगी, छितकुल प्रधान राजकुमारी नेगी, उपप्रधान अरविंद नेगी, पूर्व प्रधान नमज्ञा नरबू छोरिया, प्रमोद नेगी, राजकमल नेगी, दिव्या नेगी सहित अन्य ने कहा कि केंद्र और प्रदेश सरकार सहित सीमा सड़क संगठन को सीमावर्ती इलाकों को जोड़ने के लिए सड़कों का जाल बिछाना चाहिए। सुरक्षा के लिहाज से इन सड़कों का बनना अति आवश्यक है।
किन्नौर जिले के चारंग से तिब्बत सीमा की दूरी 23 किलोमीटर, कुन्नो से शिमदिंग ला पास 22, डुबलिंग पुल से गंगटम ला पास 30 और नेसंग गांव से जौगजेन ला पास 20 किलोमीटर की दूरी पर है।