हिमाचल की चेरी पर फाइटोप्लाजमा रोग की मार, वैज्ञानिक ने स्वस्थ चेरी के प्लांट लगाने की दी सलाह 

हिमाचल की चेरी पर फाइटोप्लाजमा रोग की मार पड़ने लगी है। प्रदेश के जिला शिमला के चेरी उत्पादक क्षेत्रों के बागवानों को सबसे अधिक आर्थिक क्षति हुई है। बागवानी वैज्ञानिकों ने चेरी उत्पादक क्षेत्रों को तीन जोन लाल, संतरी और हरित जोन में बाटने का सुझाव

हिमाचल की चेरी पर फाइटोप्लाजमा रोग की मार, वैज्ञानिक ने स्वस्थ चेरी के प्लांट लगाने की दी सलाह 

यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला        21-11-2022

हिमाचल की चेरी पर फाइटोप्लाजमा रोग की मार पड़ने लगी है। प्रदेश के जिला शिमला के चेरी उत्पादक क्षेत्रों के बागवानों को सबसे अधिक आर्थिक क्षति हुई है। बागवानी वैज्ञानिकों ने चेरी उत्पादक क्षेत्रों को तीन जोन लाल, संतरी और हरित जोन में बाटने का सुझाव दिया है। रोग ग्रस्त चेरी के पौधे हटाकर नए और स्वस्थ चेरी के प्लांट लगाने की वैज्ञानिक सलाह दी गई है। 

राज्य के बागवानी विभाग के अधिकारियों, नौणी विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों और चेरी उत्पादकों के प्रतिनिधियों की एक बैठक के बाद सलाह दी गई है कि चेरी उत्पादक क्षेत्रों को तीन जोन में विभक्त किया जाए। रेड जोन में उन क्षेत्रों को रखा जाए, जहां चेरी के 80 फीसदी से ज्यादा पौधे खराब हुए हैं। 

संतरी जोन में उन क्षेत्रों को रखा जाए, जहां 60 फीसदी चेरी के पौधे खराब हुए है। जिन क्षेत्रों में चेरी के पौधों पर रोग का असर नहीं है, उसे हरित जोन में रखा जाए। बागवानी वैज्ञानिकों का कहना है कि चेरी के पौधों की काटछांट करके चेरी के पौधे को कुछ समय तक बचाया सकता है, लेकिन फिर यह रोग बढ़ने की आशंका रहती है। 

इस कारण रोग ग्रस्त चेरी के पौधे हटाने जरूरी हैं। इनके स्थान पर नए पौधे लगाए जाएं। इस रोग से निपटने के लिए नौणी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों को अतिरिक्त फंड उपलब्ध कराया जाए। इस रोग से बचने के लिए ठोस योजना पर काम करने की आवश्यकता है। 

बागवनी अधिकारियों, बागवानी वैज्ञानिकों और बागवानों का व्हाट्सएप ग्रुप बनाकर समय-समय पर चेरी उत्पादकों को जागरूक किया जाए। इसके अलावा वैज्ञानिकों और बागवानी अधिकारियों की मदद से चेरी उत्पादकों को जागरूक करने के लिए प्रशिक्षण कैंप आयोजित किए जाएं। 

फाइटोप्लाजमा पौधे फ्लोएम ऊतक और कीट वैक्टर के इंट्रासेल्युलर परजीवी को बाध्य करते हैं। जो उनके पौधे से पौधे के संचरण में शामिल होते हैं। फाइटोप्लाज्मा की खोज 1967 में जापानी वैज्ञानिकों ने की थी, जिन्होंने उन्हें माइकोप्लाज्मा जैसे जीव कहा था। 

मशोबरा केंद्र की बागवानी वैज्ञानिक डॉ. ऊषा शर्मा बताती हैं कि इस रोग से चेरी के पौधेे के पत्ते पीली पड़ने लगते हैं और चेरी की पौधा खराब होने लगता हैं। रोग से बचने के लिए बागवान रोग से ग्रसित चेरी के पौधे की काटछांट करते हैं। इससे थोड़े समय तक राहत मिलती है और फिर यह रोग तेजी से फैलता है।