हिमाचल फिर लेगा 800 करोड़ रुपये का ऋण , कर्ज लेकर घी पी रही सुक्खू सरकार

कर्ज ले कर घी पीना यह कहावत हिमाचल सरकार पर पूरी तरह से चरितार्थ करती है। अभी सरकार को बने छह महीने ही हुए है कि सरकार ने साढ़े नौ हजार करोड़ का ऋण ले लिया है। खराब वित्तीय हालात के बीच मौजूदा वित्तीय वर्ष 2023-24 में राज्य सरकार पहली बार 800 करोड़ रुपए का कर्ज लेने जा रही

हिमाचल फिर लेगा 800 करोड़ रुपये का ऋण , कर्ज लेकर घी पी रही सुक्खू सरकार

 

यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला  01-06-2023
 
कर्ज ले कर घी पीना यह कहावत हिमाचल सरकार पर पूरी तरह से चरितार्थ करती है। अभी सरकार को बने छह महीने ही हुए है कि सरकार ने साढ़े नौ हजार करोड़ का ऋण ले लिया है। खराब वित्तीय हालात के बीच मौजूदा वित्तीय वर्ष 2023-24 में राज्य सरकार पहली बार 800 करोड़ रुपए का कर्ज लेने जा रही है। कर्ज की यह राशि दो अलग-अलग मदों में ली जाएगी। इसमें 300 करोड़ रुपए 6 वर्ष और 500 करोड़ रुपए 8 वर्ष की अवधि तक लिए जाएंगे। 
 
 
इससे पहले पिछले वित्तीय वर्ष के अंतिम महीने यानी मार्च में राज्य सरकार ने दो अलग-अलग मदों में 3200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया था। ऐसे में वर्तमान सरकार की बात करें तो सत्ता में आने के बाद से लेकर अब तक उसकी तरफ से 9500 करोड़ रुपए का कर्ज लिया जा चुका है। इस तरह अब तक हिमाचल प्रदेश पर करीब 75000 करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका है। प्रति व्यक्ति कर्ज की यह राशि करीब 96000 रुपए बनती है। 
 
 
कर्ज लेने के पीछे वर्तमान सरकार का तर्क यह है कि पिछली भाजपा सरकार राज्य को आर्थिक बदहाली पर छोड़ गई है, जिसमें सरकार के ऊपर अभी भी वेतनमान के एरियर व डीए के 12000 करोड़ रुपए बकाया है। खराब वित्तीय हालात के बीच केंद्र सरकार ऋण सीमा पर कैंची चला चुकी है। इसके तहत केंद्र सरकार ने ऋण लेने की सीमा में 5500 करोड़ रुपए की कटौती की है। इसी तरह एनपीएस खातों में जमा होने वाले वार्षिक 1780 करोड़ रुपए के एवज मिलने वाली मैचिंग ग्रांट भी रोक दी है। 
 
 
ऐसे में जहां राज्य सरकार को पहले वित्तीय वर्ष के दौरान 14,500 करोड़ रुपए कर्ज लेने की अनुमति थी, उसमें अब 5500 करोड़ रुपए की कटौती कर दी गई है। उल्लेखनीय है कि हिमाचल प्रदेश में कर्ज लेना हर सरकार की मजबूरी हो गई है। 
 
 
कर्मचारियों का वेतन और पेंशनरों की पेंशन तक को सरकार कर्ज लेकर दे रही है। प्रदेश सरकार की आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया की स्थिति बनी हुई है। ऐसे में वेतन-पेंशन हो या विकासात्मक कार्य ही हों, सरकार के लिए ऋण लेना बड़ी मजबूरी हो गई है।