46 साल बाद नहीं दिखा ढालपुर में भव्य देव मिलन, आठ देवी-देवता व 200 लोग शामिल
यंगवार्ता न्यूज़ - कुल्लू 25-10-2020
कुल्लू का दशहरा पर्व परंपरा, रीति रिवाज और ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्व रखता है। समय के साथ इस पर्व को मनाने में कई तरह के बदलाव भी देखने को मिले। पहले जहां 1962 में चीन युद्ध के दौरान भी सुक्ष्म दशहरा, इसके बाद नर्सिंह भगवान की जलेब रोकने पर गोली कांड विवाद हुआ, वर्ष 2001 में धुर विवाद के चलते लाठीचार्ज भी हुआ था, लेकिन दशहरा पर्व की परंपराएं नहीं रुकी।
आठ दिसंबर, 2014 की रात एक नेपाली युवक अपने साथियों के साथ मंदिर की छत की स्लेट उखाड़कर अंदर घुसा और चोरी की वारदात को अंजाम दिया। जनवरी 2015 में मूर्तियों को बरामद कर लिया। अब वर्ष 2020 में कोरोना संकट के कारण रथ यात्रा में पहली बार मात्र आठ देवी देवताओं ने भाग लिया। कुल्लू को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है। यहां पर हर गांव में एक देवता वास करता है।
देश-विदेश में प्रसिद्ध कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव सदियों से मनाया जा रहा है। देव आस्था का प्रतीक कुल्लू दशहरे में यूं तो हर प्रकार की झलकियां देखने को मिलती हैं। लेकिन इस बार दशहरा उत्सव में केवल आठ देवी-देवता ही रथ यात्रा में भाग लेंगे। जब देव अपनी हठ पर आ जाए तो फिर वह किसी की भी नहीं सुनते हैं।
ऐसा ही मामला इस बार के अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में देखने को मिला। देवता नाग धूमल का नाम प्रशासन की सूची में नहीं था। लेकिन जब देवता को मनाने गए तो देवता ने कहा कि वह हर हाल में दशहरा उत्सव में परंपराओं का निर्वाहन करने आएंगे। ऐसे में अब सात के बजाय आठ देवी-देवता दशहरा उत्सव में भाग ले रहे हैं। दशहरा उत्सव के शुभारंभ पर जहां सैकड़ों देवी-देवता रथ मैदान में एकत्र होते थे और आपस में मिलन को देखने के लिए भीड़ एकत्र होती थी।
इस वर्ष न तो भीड़ देखने को मिली और न ही सैकड़ों देवी-देवता। मात्र आठ देवी देवताओं से ही रथ यात्रा का निर्वहन किया गया। कोरोना जैसे भीषण बीमारी ने आज सदियों पुराने इतिहास को दोहराया है। इस वर्ष 25 अकटूबर से 31 अक्टूबर तक अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव मनाया जाएगा। इस दौरान कोरोना के नियम का पालन करने को पुलिस व होमगार्ड के जवान तैनात रहेंगे।
सांस्कृतिक व व्यापारिक गतिविधियों पर रोक
इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव में रथयात्रा होगी, इसमें आठ देवी देवताओं के साथ मात्र 200 लोग रथ की डोर को खींचेंगे। इसमें एक देवता के साथ मात्र 15 कारकून व देवलू के शामिल होने का फरमान है। इसके बाद नर्सिंह भगवान की जलेब की परंपरा भी निभाई जाएगी। अंत में सातवें दिन रथ को वापस लाया जाएगा। इस वर्ष के दशहरा उत्सव में व्यापारिक गतिविधियां नहीं होंगी, न ही लाल चंद प्रार्थी कलाकेंद्र में सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। न ही डोम लगेंगे और न ही झूला
इस दौरान नहीं हुई थी रथयात्रा
कुल्लू दशहरा उत्सव में यह पहला मौका था, जब रघुनाथजी तीन सालों तक ढालपुर मैदान में रथयात्रा ही नहीं हुई थी। 1971 में सरकारी अमले द्वारा दशहरा उत्सव में निकलने वाली नर्सिंह भगवान की जलेब पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस दौरान राजा और टीका महेश्वर सिंह को गिरफ्तार करने की योजना थी। इसी संबंध में देव समाज के लोगों में भारी रोष पनपा और दशहरा उत्सव में विरोध स्वरूप भगदड़ मच गई। स्थित को नियंत्रण करने के लिए जहां पुलिस ने लाठीचार्ज और गोलियां तक चलाई। इस दौरान कई लोग घायल और एक व्यक्ति की मौत भी हो गई थी। इसके बाद वर्ष 1972-73 में रथ यात्रा नहीं हुई। इसके बाद 1974 में पुन: एक बार फिर से दशहरा उत्सव की परंपराओं का निर्वहन किया गया। 46 साल बाद फिर ऐसा हुआ है।
रथ में भगवान रघुनाथ जी के साथ कौन-कौन
दशहरा उत्सव में रथ में रघुनाथ जी की तीन इंच की प्रतिमा और उससे भी छोटी सीता तथा हिडिंबा की मर्ति को बड़ी सुंदरता से सजा कर रखा जाता है। पहाड़ी से माता भेखली का आदेश मिलते ही रथ यात्रा शुरू होती है। रस्सी की सहायता से रथ को ढालपुर के रथ मैदान से अस्थायी शिविर तक ले जाया जाता है। जहां यह रथ छह दिन तक ठहरता है। राज परिवार के सभी पुरुष सदस्य राजमहल से दशहरा मैदान की ओर धूम-धाम से रवाना हो जाते हैं। सातवें दिन रथ को पुन: उसके स्थान पर लाया जाता है और रघुनाथजी को रघुनाथपुर के मंदिर में पुन:स्थापित किया जाता है। इस तरह विश्वविख्यात कुल्लू का दशहरा हर्षोल्लास के साथ संपूर्ण होता है।