आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं को मिली सफलता, गंगा बेसिन में आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या होगी दूर

आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं को मिली सफलता, गंगा बेसिन में आर्सेनिक प्रदूषण की समस्या होगी दूर

यंगवार्ता न्यूज़ - मंडी   16-03-2021

हिमाचल समेत देश की नदियों में धातुओं की मात्रा अधिक होने के कारण हो रहे आर्सेनिक प्रदूषण को अब कम किया जा सकेगा। आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के शोधार्थियों ने बायोपॉलीमर सामग्री से फाइब्रस मेंब्रेन फिल्टर विकसित किया है जो नदियों के पानी में घुली धातुओं को आसानी से निकाल सकेगा। 
गंगा बेसिन में आर्सेनिक जल प्रदूषण की समस्या अधिक है। इसके अलावा उद्योगों के विषैले पानी से लेड, मर्करी, क्रोमियम और कॉपर जैसी धातुएं पानी में मिल जाती है जो सेहत के लिए खतरनाक हैं। पानी स्वच्छ होने से लोगों में अल्जाइमर, पार्किसिंन और मल्टीपल स्क्लेरोसिस जैसे दिमागी रोग भी कम होंगे।

इस फिल्टर से नदियों, जलाशयों में जाने से पूर्व औद्योगिक स्तर पर जल का उपचार किया जाएगा। शोध को प्रतिष्ठित ऐलसेवियर जर्नल पॉलीमर में प्रकाशित किया गया है। 

शोधकर्ता आईआईटी मंडी के डॉ. सिन्हा राय ने बताया कि इस फिल्टर को औद्योगिक स्तर पर ले जाने के लिए तैयार हैं। शोध में एडजंक्ट असिस्टेंट प्रोफेसर, यूनिवर्सिटी आफ इलिनॉय, शिकागो डॉ. सुमन सिन्हा रॉय ने सहयोग किया है। 

डॉ. सिन्हा ने बताया कि शोध खनन मंत्रालय भारत सरकार के वित्तीय सहयोग से किया गया है। इसके सकारात्मक परिणाम मिले हैं। पानी में हेवी मेटल का प्रदूषण एक गंभीर चिंता की बात है। भारत के गंगा बेसिन में आर्सेनिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या चिंताजनक है। इसमें यह तकनीक कारगर साबित होगी। 

 
शोध में औद्योगिक स्तर पर उपयोगी एडजार्बेंट उत्पादन पद्धति का विकास किया है। एडजार्बेंट की एक खूबी यह है कि इनमें बड़ी मात्रा में बायोपॉलीमर चिटोसन है, जो क्रैब सेल से लिया जाता है। इसे जाने-माने पॉलीमर नायलॉन के साथ मिक्स किया है। 

फिल्टर कार्टेज में फाइबर को मेल्ट ब्लोइंग पद्धति से प्रोसेस करते हैं। इसमें सॉल्यूशन ब्लोइंग नामक प्रक्रिया का उपयोग किया है। इसमें फाइबर के डायमीटर नैनोमीटर में होते हैं अर्थात इंसान के एक बाल से हजार गुना बारीक। फाइबर के बारीक होने से उनका सर्फेस एरिया पर बहुत बढ़ जाता है। इसके परिणामस्वरूप हेवी मेटल्स को बेहतर सोख लेते हैं।