आटे के बकरे बनाकर क्योंथल में मनाया बैशाखी पर्व , सक्रांति पर घर के बाहर बुरांस की माला लगाते है लोग 

तत्कालीन क्योेंथल़ रियासत  में बीशू की साजी अर्थात बैशाखी  का पर्व  बड़े हर्षोंल्लास व परंपरागत तरीके के साथ मनाया गया। परंपरा के अनुरूप लोगों द्वारा इस त्यौहार पर विभिन्न प्रकार के पारंपरिक व्यंजन बनाए गए। जिनमें आटे के बकरे बनाने की अनूठी परंपरा बदलते परिवेश में भी कायम

आटे के बकरे बनाकर क्योंथल में मनाया बैशाखी पर्व , सक्रांति पर घर के बाहर बुरांस की माला लगाते है लोग 

यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला  15-04-2023
 
तत्कालीन क्योेंथल़ रियासत  में बीशू की साजी अर्थात बैशाखी  का पर्व  बड़े हर्षोंल्लास व परंपरागत तरीके के साथ मनाया गया। परंपरा के अनुरूप लोगों द्वारा इस त्यौहार पर विभिन्न प्रकार के पारंपरिक व्यंजन बनाए गए। जिनमें आटे के बकरे बनाने की अनूठी परंपरा बदलते परिवेश में भी कायम है। इस पर्व पर आटे के बकरे तथा पटांडे व खीर बनाना घर में शुभ मानते हैं। कालांतर से इस पर्व को हर वर्ष नववर्ष के आगमन के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। 
 
 
जिसमें संक्रांति से दो दिन पहले लोग अपने घरों में सिडडू बनाते है। अगले  दिन पहले लोग दिन में अपने घरों में आटे के बकरे तथा रात्रि को अस्कलियां बनाने की विशेष परंपरा है जिसे घी के साथ खाया जाता है। संक्रांति के दिन लोगों द्वारा अपने घरों पटांडे और खीर बनाई जाती है। इसके अतिरिक्त घर के बाहर बुरांस के फूलों की माला लगाते है जिसे इस पर्व पर बांधना बहुत शुभ माना जाता है। वरिष्ठ नागरिक दयाराम वर्मा और  प्रीतम सिंह ठाकुर ने बताया कि बीशू की साजी अर्थात  संक्रांति को  लोगों द्वारा अपने कुलदेवता  के मंदिर में विशेष पूजा की जाती है जिसमें सभी लोग अपनी भागीदारी सुनिश्चित करते हैं। 
 
 
कामना पूरी होने पर लोग इस दिन मंदिर में मनौती भी चढ़ाते हैं। उन्होने बताया कि पहाड़ी क्षेत्रों में वर्ष में पड़ने वाली चार बड़ी साजी का विशेष महत्व है। जिनमें बैशाख संक्राति, श्रावण मास की  हरियाली संक्राति, दीपावली और मकर संक्राति शामिल है। इस दिन लोग अपने कुलदेवता के मंदिर में जाकर विशेष रूप से हाजरी भरते हैं। 
 
 
प्रदेश के जाने माने साहित्यकार शेरजंग चैहान ने बताया कि बैशाख की सक्रांति आने से पहले लोग अपनी विवाहित बेटियों व बहनों को उनके घर जाकर त्यौहार देने की विशेष परंपरा आज भी कायम है जिसका बेटियां बड़ी बेसब्री से इंतजार करती है। मेले व त्यौहार किसी भी क्षेत्र की संस्कृति के संवाहक है जो लोगों को अपने अतीत से जोड़ते हैं।