इस बार 28 नहीं 27 गते सोमवार को मनाया जाएगा माघी त्यौहार, गिरिपार के काटते है हजारों बकरे  

समूचे ट्रांसगिरी क्षेत्र में सबसे बड़े त्योहार माघी त्योहार सोमवार को मनाया जा रहा है। प्रति वर्ष यह त्योहार 28 गते पौष में मनाया जाता है।

इस बार 28 नहीं 27 गते सोमवार को मनाया जाएगा माघी त्यौहार, गिरिपार के काटते है हजारों बकरे  

अंकिता नेगी - पांवटा साहिब   09-01-2022

समूचे ट्रांसगिरी क्षेत्र में सबसे बड़े त्योहार माघी त्योहार सोमवार को मनाया जा रहा है। प्रति वर्ष यह त्योहार 28 गते पौष में मनाया जाता है। लेकिन इस मर्तवा 28 गते को मंगलवार होने की वजह से इसे सोमवार को मनाया जाएगा। लेकिन उत्तराखंड के जौनसार बाबर में उसे 28 गत्ते को ही मनाया जाएगा।

इस दिन हजारों बकरों, सुअरों ओर खड़डू की बलि चढ़ाई जाएगी। करोड़ो रुपयों की बलि एक दिन ही चढ़ाई जाती है। यह हाटी संस्कृति का मुख्य हिस्सा है।यह त्योहार जिला सिरमौर के ट्रांसगिरी क्षेत्र की 144 पंचायतों में से लगभग 125 पंचायतों में मनाया जाता है।

प्रत्येक पंचायत में लगभग 80 से 100 घरों में बकरों की बलि दी जाती है। 125 पंचायतो में इसकी कीमत करोड़ो रुपयों की आंकी गयी है। इसके अलावा शिमला जिले के जुब्बल ओर उत्तराखंड के जौनसार में मनाया जाता है। हालांकि जुब्बल में इससे पोश महीने के शुरू में ही मनाया जाता है।

शिमला में इसे ट्रांस गिरी और उत्तराखंड की तर्ज ओर एक दिन ही नहीं मनाया जाता। वहां यह त्योहार कई दिनों तक चलता है। लेकिन ट्रांस गिरी और उत्तराखंड में यह त्योहार एक ही दिन 28 गत्ते को मनाया जाता है। जानकारी के अनुसार यह त्योहार दैवीय शक्ति से भी जोड़ा गया है।

त्योहार वाले दिन सुबह पहले अपनी अपनी कुल देवी( ठारी, डुंडी, कुजयाट, काली) के नाम का आटे ओर घी का खेन्डा(हलवा) तैयार कर देवी का चढ़ाया जाता हैं। उसे बाद बकरे को गुड़ाया जाता है। उसके पश्चात ही बलि दी जाती है। उस दिन क्षेत्र में सभी व्यवसाय बन्द रहते है और सभी कर्मचारी छुटी पर रहते है। इस त्योहार के भी कई रीति रिवाज है। त्योहार से पहले दिन बोषता मनाया जाता है। उस दिन पक्का खाना ( बेड़ोली ) बनाई जाती है।

त्योहार वाले दिन को भातियोज कहा जाता है। उसके बाद ओर मकर संक्रांति से पहले वाले दिनों को साजा कहा जाता है। त्योहार का हिस्सा सभी रिश्तेदारी, ब्याही हुई लड़कियों को दिया जाता है। हर परिवार अपनी ब्याही हुई लड़की के वहां उसका हिस्सा लेकर जाते है। हिस्से के तौर पर गुड़ ले जाया जाता है।

पूरे माघ के महीने में हर गांव में मुजरा महफ़िल लगती है। लेकिन यह अब कुछ एक गांव में रह गई है। अधिकतर लुफ्त हो चुकी है।