कच्चे माल की कीमतें बढ़ने से दवा उद्योग पर संकट , चीन पर निर्भरता पड़ रही महंगी 

कच्चे माल की कीमतें बढ़ने से दवा उद्योग पर संकट , चीन पर निर्भरता पड़ रही महंगी 

यंगवार्ता न्यूज़  - नाहन  13-05-2021

 कोरोना की दूसरी लहर से मिले घावों के बीच आवश्यक दवाओं की कमी चिंता बढ़ा रही है। चीन से आई महामारी से निपटने के लिए जिन दवाओं की जरूरत है, उनके कच्चे माल के लिए भारत चीन पर ही निर्भर है। भारत बेशक आकार के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है लेकिन आवश्यक दवाओं का उत्पादन कच्चे माल की कमी के कारण संकट में है।

दवाएं इसलिए महंगी मिल रही हैं क्योंकि कच्चा माल नहीं है। भारत के लिए 85 प्रतिशत कच्चा माल चीन से आता है, भारत में केवल 15 फीसद बनता है। यह रॉ मैटेरियल या कच्चा माल एपीआई के नाम से जाना जाता है यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडियंट ! इसे मनुष्य निर्मित रसायन या मॉलिक्यूल भी कहते है । जैसे क्रोसिन का एपीआई पैरासीटामोल।

बीते कुछ माह के दौरान जीवन रक्षक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के दाम कई गुणा बढ़े हैं। बढ़ती हुई मांग के जवाब में 50 फीसद माल भी चीन से दवा उद्योग को नहीं मिल रहा है। जाहिर है, पुख्ता कदम नहीं उठाए तो देशभर में जीवन रक्षक दवाओं का संकट पैदा हो सकता है। खास बात यह है कि कोरोना उपचार के दौरान इस्तेमाल हो रही दवाओं के कच्चे माल की मांग ही सबसे अधिक बढ़ी है।                                                     

चीन पर निर्भरता भारत की विवशता 

इसलिए, क्योंकि चीन ने इतनी सस्ती दरों पर सामान देना शुरू किया कि भारतीय उद्योग यहां कच्चा माल बना कर भी चीन वाली कीमत पर नहीं उतर पा रहे थे। 10 साल पहले तक भारत में ही एएसआई बनते थे।

राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा से बतौर प्रोफेसर मेडिसिन सेवानिवृत्त हुए डॉ. राजेश शर्मा कहते हैं, 'चीन में न मानवाधिकार हैं, न श्रमशक्ति कुछ कहती है और मशीनें भी अत्याधुनिक हैं इसलिए वह सस्ते में बना और बेच कर भी कमा जाता है।

भारत सरकार की अनुमति के बाद चीन ने बेहद सस्ते रेट पर भारतीय दवा उद्योगों को एपीआई मुहैया करवाया। इसके बाद भारतीय बाजार पर चीनी कंपनियों का एकाधिकार हो गया। जनवरी 2020 में भारत में कोरोना की दस्तक के साथ ही एपीआई का संकट पैदा हुआ और भारत ने बल्क ड्रग पार्क बनाए जाने की दिशा में प्रयास शुरू किया। बल्क ड्रग पार्क यानी जहां बड़े स्तर पर दवाओं के लिए कच्चे माल का उत्पादन होता है।

एक बल्क ड्रग पार्क ऊना में हो, इसके लिए प्रयास जारी है लेकिन हुआ कुछ नहीं है। देश के फार्मा हब बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) में 650 दवा कंपनियां हैं जो भारत और विदेश में भी दवा आपूर्ति करती हैं। इनमें से अधिकांश के लिए कच्चा माल चीन से आता है।

चीन ने बीते दिनों भारत के लिए विमान सेवाएं बंद कर दी थी, नतीजतन दो सप्ताह तक एपीआई की आपूर्ति बंद रही। अभी मांग और आपूर्ति के बीच ऊंट और जीरे वाला संबंध है, जिसका असर दवाओं के उत्पादन पर पड़ने लगा है। दवा उत्पादक संघ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. राजेश गुप्ता कहते हैं कि एपीआई की आपूर्ति कम होने और कीमतें बढ़ने से छोटे दवा उद्योग सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। चीन से समय पर सामान नहीं आ रहा है।

बेशक अब तक उत्पादन पर असर नहीं पड़ने दिया गया है। एपीआई के बढ़ते रेट का मामला केंद्र सरकार के समक्ष उठाया गया है। राज्य दवा नियंत्रक हिमाचल प्रदेश नवनीत मारवाह का कहना है एपीआई की आपूर्ति का मामला सरकार के ध्यानार्थ लाया गया है। विभाग इस मामले में कुछ भी करने में सक्षम नहीं है।

 केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआई) कसौली के निदेशक डॉ. एके तहलान का कहना है एंटी कोविड-19 सीरम के तीन बैच तैयार करके एनआइवी लैब पुणे भेजे गए हैं। यहां से रिपोर्ट आने के बाद आगे का अनुसंधान कार्य शुरू किया जाएगा। अगर हमें स्वीकृति मिलती है तो हम कच्चे माल के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे, देश में ही कुछ करेंगे।

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तीन गुणा से अधिक हो गए एपीआई के दाम

  • एपीआई                    पुराना रेट            नया रेट       ( प्रति किलो)
  • पेरासिटामोल              350,                    900
  • आइवरमेक्टिन          15000,               70000
  • डॉक्सीसाइक्लिन        6000,               15500
  • एजिथ्रोमाइसिन          8500,               14000
  • प्रोपिलीन ग्लाइकोल     140,                   400