गृष्मकालीन प्रवास से लौटने लगे सिरमौरी घुमंतू गुज्जर, मैदानी इलाकों में मवेशियों संग डालेंगे डेरा
यंगवार्ता न्यूज़ - श्रीरेणुकाजी 22-08-2020
सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस दौर में बेशक कुछ लोग मंगल ग्रह पर घर बनाने का सपना देख रहे हों, मगर आधुनिकता की चकाचौंध से कोसों दूर अपने मवेशियों के साथ जंगल-जंगल घूम कर जीवन यापन करने वाले सिरमौरी गुज्जर समुदाय के लोगों को आज भी बेघर होने पर खास मलाल नहीं है।
इन दिनों चूड़धार व सिरमौर के अन्य ऊपरी इलाकों में लगातार बारिश के चलते हल्की ठंड शुरू होने के बाद उक्त समुदाय के लोग जिला के पांवटा दून, नाहन व गिन्नी घाड़ आदि गर्म अथवा मैदानी इलाकों के प्रवास पर निकल चुके हैं।
गिरिपार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले उपमंडल संगड़ाह, राजगढ़ व शिलाई के पहाड़ी जंगलों में सदियों से अप्रैल व मई महीने में उक्त समुदाय के लोग अपनी भैंस, गाय, बकरी व बैल आदि पशुधन के साथ गर्मियां बिताने पहुंचते हैं इन दिनों लौटने लगते हैं।
अपने मवेशियों के साथ पैदल गंतव्य तक पहुंचने में इन्हे करीब एक माह का समय लग जाता है। सिरमौरी साहित्यकार डॉ. रूप कुमार शर्मा व कुछ अन्य हिमाचली इतिहासकारों के अनुसार सिरमौरी गुज्जर छठी शताब्दी में मध्य एशिया से आई हूण जनजाति के वंशज है।
गुज्जर समुदाय के अधिकतर परिवारों के पास अपनी जमीन अथवा घर पर नहीं है, हालांकि कुछ परिवारों को सरकार द्वारा पट्टे पर जमीन उपलब्ध करवाई गई है।