चार जनवरी को वार्ता विफल रही तो अन्नदाता से हिंसक वारदातें करवाएंगे मोदी विरोधी नेता

चार जनवरी को वार्ता विफल रही तो अन्नदाता से हिंसक वारदातें करवाएंगे मोदी विरोधी नेता

न्यूज़ एजेंसी - नई दिल्ली  02-01-2021

दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के पड़ाव को 2 जनवरी को 40 दिन पूरे हो गए। किसानों के नेताओं का कहना है कि यदि 4 जनवरी को सरकार के मध्य वार्ता विफल हो जाती है तो आंदोलन में सख्ती लाई जाएगी। नेताओं की जिद है कि केन्द्र सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले। दिल्ली देश की राजधानी है और किसानों ने एक तरह से दिल्ली की घेराबंदी कर रखी है, जिससे दिल्ली के करोड़ों लोगों को परेशानी हो रही है।

अब जब किसानों के नेता सख्ती की बात कह रहे हैं तो संभव है कि पुलिस और सुरक्षा बलों के साथ झड़प हो। कहा जा रहा है कि हरियाणा को बंद करवाया जाएगा और दिल्ली में घुसने के प्रयास होंगे। यानि चार जनवरी के बाद अन्नदाता से हिंसक वारदातें करवाई जाएंगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि पुलिस और सुरक्षा बलों ने पिछले चालीस दिनों से बहुत संयम बरत रखा है। लेकिन 4 जनवरी के बाद जब कानून तोडऩे को लेकर सख्ती होगी तो पुलिस व सुरक्षा बल अपना दायित्व भी निभाएंगे।

सब जानते हैं कि किसान आंदोलन के पीछे कांग्रेस, वामदल जैसे राजनीतिक दल खड़े हैं। ऐसे राजनीतिक दलों के नेता हर उस आंदोलन को अपना समर्थन दे देते हैं जो नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार के विरुद्ध हो। ऐसा ही माहौल संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में देखने को मिला था। यह माना कि अनेक दलों के नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से ईष्र्या रखते हैं। ऐसे नेता मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर देखना नहीं चाहते।

ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे राजनीतिक दलों के नेता चुनावों में मोदी को क्यों नहीं हराते? भारत में लोकतंत्र है और लोकतंत्र की प्रक्रिया के तहत ही नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं। यदि राजनीतिक दलों को कृषि कानून पसंद नहीं आ रहे हैं तो उन्हें 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव का इंतजार करना चाहिए। जो राजनीतिक दल 2014 और 2019 में नरेन्द्र मोदी से चुनाव हार गए वो अब किसानों के पीछे खड़े होकर मोदी पर हमला कर रहे हैं। क्या इन तौर तरीकों से नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देंगे? केन्द्र सरकार के मंत्रियों एवं स्वयं प्रधानमंत्री ने भी कई बार कहा है कि नए कृषि कानून किसानों के हित में है, इसलिए समाप्त नहीं होंगे।

सब जानते हैं कि दिल्ली के बाहर जो किसान बैठे हैं, उनमें से अधिकांश पंजाब के हैं और पंजाब में कांग्रेस की सरकार है। देश में न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी सबसे ज्यादा खरीद पंजाब में ही होती है। एमएसपी की आड़ में पंजाब की मंडियो के दलाल माला माल हो गए हैं। नए कानून के तहत जब कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग होगी तो किसान को लागत का कई गुना खेत पर ही मिल जाएगा। जब किसान अपना माल लेकर मंडियों में नहीं आएगा तो फिर पंजाब के दलालों का क्या होगा? यही चिंता पंजाब के दलालों को सता रही है।

ऐसे में दलालों को किसानों की चिंता नहीं है, इन्हें अपनी चिंता है। नए कृषि कानून से तो किसान माला माल होगा। लेकिन मंडियों के दलाल अपने स्वार्थों के खातिर कुछ किसानों से आंदोलन करवा रहे हैं। जिन राजनीतिक दलों के नेता किसानों को भड़काने में लगे हुए हैं, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि नए कृषि कानून के विभिन्न प्रावधानों के अंतर्गत अब तक तीन करोड़ से भी ज्यादा किसानों ने अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया है। 

सीएम और मंत्री धरना देंगे:

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शुरू से ही तीनों कृषि कानूनों के विरोध में हैं। गहलोत ने विधानसभा में भी  केन्द्र के कानूनों में संशोधन किए हैं। गहलोत सरकार के संशोधन राज्यपाल कलराज मिश्र के पास पड़े हैं। विरोध के इस सिलसिले में ही 3 जनवरी को सीएम अशोक गहलोत जयपुर के शहीद स्मारक पर धरना देंगे। सीएम के साथ मंत्री मंडल के सभी सदस्य और विधायक भी शामिल होंगे। गहलोत का प्रयास है कि धरने में कांग्रेस के विधायकों के साथ साथ निर्दलीय तथा समर्थन देने वाले विधायक भी शामिल हों। 3 जनवरी के धरने में अधिक से अधिक विधायकों को शामिल करने के लिए सरकार ने पूरी ताकत लगा दी है।