यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 21-10-2020
57 प्रतिशत अनुसूचित जाति की आबादी होेने के बावजूद भी पिछले 46 वर्षों में शिमला जिला की पीरन पंचायत से अनुसूचित जाति पुरूष वर्ग को प्रधान बनने का कभी मौका नहीं मिल पाया है जिससे प्रधान पद के लिए दावेदारी रखने वाले चाहवान युवाओं में काफी मायूसी छाई हुई है।
गौर रहे कि वर्ष 2011 की जनगणना के आधार पर पीरन की आबादी 1175 आंकी गई है जिसमें 668 अनुसूचित जाति के शामिल हैं अर्थात 57 प्रतिशत आबादी एससी वर्ग की है। इस वर्ग द्वारा पंचायतीराज के रोस्टर को एक छलावा का करार दिया गया है ।
हालांकि अनुसूचित जाति वर्ग से दो बार महिलाओं को अवश्य प्रधान बनने का मौका मिला है। एससी वर्ग के चाहवान युवाओं का कहना है कि रोस्टर बनाते समय राजनैतिक पक्षपात किया जाता रहा है। गौर रहे कि वर्ष 1974 में कोटी पंचायत से पृथक होकर पीरन पंचायत बनाई गई थी। जिसके प्रथम प्रधान बालक राम निर्मोही 23 जनवरी 1974 से 23 जनवरी 1979 तक इस पद बने रहे । इसके उपरांत वर्ष 1979 से 1995 तक अर्थात तीन टेन्योर में 16 वर्षों तक दयाराम वर्मा प्रधान पद पर आसीन रहे ।
इसी प्रकार वर्ष 1995 में पहली बार एससी महिला वर्ग से गदंबो देवी वर्ष 2000 तक, सामान्य पुरूष वर्ग से मोहर सिंह ठाकुर वर्ष 2005 तक तथा महिला सामान्य वर्ग से कमलेश ठाकुर वर्ष 2010 तक इस पद पर आसीन रही। तदोपरांत एससी महिला वर्ग से सुष्मा कश्यप वर्ष तक 2015 और वर्तमान प्रधान अतर सिंह ठाकुर सामान्य वर्ग से प्रधान चुने गए।
लिहाजा वर्ष 1974 से लेकर आज तक अनुसूचित जाति पुरूष वर्ग प्रधान बनने की चाह में अपनी पारी का इंतजार करते रहे पंरतु हर बार पंचायतीराज रोस्टर का जिन्न कुछ ओर ही निकलता रहा। नाम न छापने की शर्त पर एससी वर्ग के युवाओं का कहना है कि यदि इस बार उन्हें मौका नहीं दिया गया तो वह अवश्य कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे।
अनेक बुद्धिजीवी वर्ग का कहना है कि रोस्टर में हर वर्ग को मौका दिया जाना चाहिए और राजनैतिक दबाव के चलते रोस्टर में कोई छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। जिला पंचायत अधिकारी शिमला विजय ब्रागटा ने बताया कि पंचायतीराज चुनाव के रोस्टर को जारी करने के लिए सरकार द्वारा फार्मूला बनाया गया है जिसके आधार पर सीटों का आरक्षण इत्यादि किया जाता है।