जन्म दिन पर जूते : अशोक गौतम का व्यंग्य संग्रह प्रकाशित
यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन 02-02-2021
हिमाचल प्रदेश के सोलन जिला के अर्की उपमंडल के म्याणा गांव में जन्मे अशोक गौतम का पैंतीसवां व्यंग्य संग्रह ‘जन्मदिन पर जूते’ देश के हिंदी साहित्य के लब्ध प्रतिष्ठित, हिंदी साहित्य को समर्पित, यशस्वी प्रकाशन, देश भारती प्रकाशन, दिल्ली के प्रकाशन निदेशक बीपी सिंह एवं प्रकाशक मोहित सिंह ने प्रकाशित किया है।
उनका यह संग्रह प्रकाशक द्वारा पाठकों को दिल्ली बुक सेंटर के साथ ही साथ अमेजन और फि्लपकाट पर भी आनलाइन उपलब्ध कराया गया है ताकि अधिक से अधिक पाठक व्यंग्य संग्रह का आनंद उठा सकें।
इस व्यंग्य संग्रह के बारे में जानकारी देते हुए अशोक गौतम ने बताया कि यह व्यंग्य संग्रह जीवन और समाज की विसंगतियों को विभिन्न कोणों से पाठको से साझा करने का प्रयास है। यह संग्रह आम आदमी के जीवन से जुड़ी उन विसंगतियों का व्यक्त करता है जिनसे उसका उठते बैठते पाला पड़ता रहा है।
अशोक गौतम का इस संग्रह के व्यंग्यों के बारे में आश्वस्त होते कहना है कि आज ज्यों ज्यों समय बदल रहा है, मानवीय मूल्य के अर्थ बदल रहे हैं। नैतिकताओं के मायने बदल रहे हैं।
इन्हीं बदलते अर्थों के बीच इस संग्रह के व्यंग्य पाठकों का जहां एक ओर पढ़ते हुए आनंद प्रदान करेंगे वहीं दूसरी ओर वे उन्हें आपने आसपास की विसंगतियों से भी रूबरू करवाने में सक्षम होंगे।
जन्मादिन पर जूते व्यंग्य संग्रह के बारे में प्रदेश के जानेमाने साहित्यकार बद्री सिंह भाटिया ने बताया कि अशोक गौतम के व्यंग्य हमारी जिंदगी के आसपास के व्यंग्य होते हैं। जीवन के सचों के व्यंग्य होते हैं। वे अपने व्यंग्य में अपने आस पास की समस्या को बखूबी उठाते हैं।
यही वजह हैं कि उनके व्यंग्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के पाठकों द्वारा जमकर पढ़े जाते हैं। उनकी व्यंग्य की रंेज व्यापक है। उनके व्यंग्यों की मारक क्षमता देखते ही बनती है।
जन्मदिन पर जूते व्यंग्य संग्रह के बारे में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कहानियोें एवं हिमाचल की संस्कृति को पहचान दिलवाने वाले के माध्यम से प्रदेश की कहानियों को स्थापित करने वाले नेमचंद ठाकुर का कहना है कि अशोक गौतम के व्यंग्य नाविक के तीरों से होते हैं।
दिखने में तो सीधे सपाट से लगते हंै, पर जब उन्हें पढ़ने के बाद जो घाव होता है, वह इतना गंभीर होता है कि आदमी तिलमिला उठता है। गौतम ने अपने व्यंग्य लेखन के माध्यम से प्रदेश में लिखे जा रहे व्यंग्य के माध्यम से व्यंग्य विधा को नई दिशा दी है। उनके इस संग्रह के व्यग्यों के बीच से गुजरते हुए कृश्नचंदर, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी के व्यंग्यों के बीच से गुजरने का सा अहसास होता है।
इस संग्रह में आशोक गौतम में चालीस व्यंग्य संग्रहीत हैं जो चालीस ही कोनों से समाज की दुखती रग पर प्यार से हाथ रखते हैं। गौतम हिंदी व्यंग्य विधा को पैंतीस व्यंग्य संग्रह दे व्यंग्य विधा में श्री वृदि्ध कर चुके हैं। यदि राष्ट्रीय स्तर पर व्यंग्य की बात की जाए तो अब तक के उनके ये व्यंग्य संग्रह सबसे अध्िाक हैं।
वे राष्ट्रीय स्तर पर इकलौते व्यंग्यकार हैं जिनके इतने व्यंग्य संग्रह प्रकाश्िात हो चुके हैं जो हिमाचल प्रदेश के साहित्य जगत के लिए किसी गौरव से कम नहीं।