देश में यूजीसी एकदम न करें लागू,नई एजूकेशन पॉलिसी को पहले पॉयलट बेस पर करें लागू

देश में यूजीसी एकदम न करें लागू,नई एजूकेशन पॉलिसी को पहले पॉयलट बेस पर करें लागू

यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन  11-06-2021
 
देश में नई एजूकेशन पॉलिसी का कॉन्सेप्ट ड्राफ्ट बनाया गया है, इसके अनुसार देश में उच्च शिक्षा 40 फीसदी ऑनलाइन और 60 फीसदी क्लासरूम टीचिंग की गई है। इससे आम आदमी के लिए उच्च शिक्षा सपना बन जाएगी। 

इस कॉनसेप्ट को देश में फिलहाल पायलट बेस पर लागू किया जाना चाहिए ताकि इसके अच्छे -बुरे प्रभाव की व्यवहारिक स्थिति का पता चल सकें। देश में नई शिक्षा नीति के लागू हो जाने के बाद 40 फीसदी शिक्षा ऑनलाइन मॉड से होगी। 

हिमाचल प्रदेश महाविद्यालय शैक्षिक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रो. रवीन्द्र ठाकुर, महासचिव प्रो. देवेंद्र  और सगंठन सचिव प्रो. बीएस पटियाल ने बताया कि संघ ने ऑब्जर्वेशन एंड सुजेशन ऑन बलेंडिड मॉड ऑफ टीचिंग एंड लर्निंग के तहत यूजीसी को 16 सूत्री सुझाव दिए हैं। 

इसमें बताया गया है कि नई एजूकेशन पॉलिसी के तहत बच्चों को किन-किन समस्याओं से दो-चार होना पड़ेगा। राष्ट्रीय स्तर पर 12 सूत्री सुझाव पत्र यूजीसी के अध्यक्ष को सौंपा

प्रदेश महाविद्यालय शैक्षिक संघ के प्रदेश अध्यक्ष प्रो. रवीन्द्र ठाकुर ने बताया कि नई एजूकेशन पॉलिसी के तहत जो बदलाव हो रहे हैं, इसके लिए अखिल भारतीय राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ ने भी अपनी आवाज बुलंद की है।

वर्तमान परिस्थिति में शिक्षा व्यवस्था के संबंध में छात्रों के सीखने और शिक्षकों के सिखाने की मिश्रित पद्धति पर 12 बिंदुओं का एक सुझाव पत्र यूजीसी के अध्यक्ष को भेजा है। 

शिक्षा के उच्च स्तर पर छात्रों की आवश्यकता रुचि और सुविधा के आधार पर छात्र केंद्रित पाठ्यक्रम की अवधारणा प्रशंसनीय है। किंतु यहां भी छात्र को मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। बहुत सारे शोधों में यह पाया गया है कि वयस्क विद्यार्थी अपनी अन्य समस्याओं में उलझे होकर यूजीसी के कार्यक्रम 'मूक'के माध्यम से अधिगम से उतनी तल्लीनता से नहीं जुड़ पाते, जितना परंपरागत पाठ्यक्रम में जुड़ पाते हैं।

ऑनलाइन शिक्षा में डाटा की वितरण प्रणाली अत्यधिक तकनीकी है, जिसमें अधिकांश तकनीकी संसाधन  स्वदेशी नहीं हैं। विदेशी कंपनियों को इस तरह का डिजिटल एकाधिकार देना देश की अखंडता और शिक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है। 

ऑफलाइन शिक्षा के उलट ऑनलाइन शिक्षा में शिक्षक के मूल्यांकन का अधिकार छात्रों को दिया जाता है। इससे प्राचीन भारतीय गुरु शिष्य परंपरा को क्षति पहुंची है।
  

एबीआरएसएम का सुझाव है कि सर्वप्रथम सीमित रूप में सीखने के मिश्रित तरीके को कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उच्च शिक्षा संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए और फीडबैक, सर्वेक्षण, विश्लेषण और संशोधनों के आधार पर धीरे-धीरे योजनाबद्ध तरीके से अन्य उच्च शिक्षा संस्थानों में मिश्रित मोड में लागू करना चाहिए। 

बहु वैकल्पिक प्रश्नों के आधार पर उम्मीदवार की क्षमता का ठीक से आंकलन संभव नहीं है। मांग मोड़ पर परीक्षा अराजकता की स्थिति उत्पन्न कर सकती है। एबीआरएसएम का सुझाव है कि इन विधियों को पहले दो-तीन चयनित पाठ्यक्रमों या संस्थानों में लागू किया जाना चाहिए और सामान्य निर्णय लेने से पहले फीडबैक या परिणामों का विश्लेषण करना चाहिए। 

एबीआरएसएम का मानना है कि ऑनलाइन सीखने पर अतिरिक्त ध्यान समग्र विकास के लक्ष्यों में बाधा डाल सकता है जिसमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित संज्ञानात्मक कौशल के साथ-साथ सामाजिक, नैतिक और भावनात्मक कौशल का विकास शामिल है।

इन सभी तथ्यों के आलोक में एबीआरएसएम मांग करता है कि शिक्षण और सीखने की मिश्रित तरीके के बारे में उपयुक्त संशोधित कदम उठाए जाएं। महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. जे.पी. सिंघल, राष्ट्रीय संगठन मंत्री महेंद्र कपूर एवं महामंत्री शिवानंद सिंदनकेरा के नेतृत्व में ये सुझाव तैयार कर भेजे गए हैं।