पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित हुए हुई हिमाचल की दो शख्सियतें, सिरमौरी साहित्य और चंबा रूमाल को सम्मान 

सिरमौर जिला के उपमंडल राजगढ़ के दूरदराज गांव देवठी-मझगांव के रहने वाले लोक साहित्यकार विद्यानंद सरैक को पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है।

पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित हुए हुई हिमाचल की दो शख्सियतें, सिरमौरी साहित्य और चंबा रूमाल को सम्मान 
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला  26-01-2022
 
सिरमौर जिला के उपमंडल राजगढ़ के दूरदराज गांव देवठी-मझगांव के रहने वाले लोक साहित्यकार विद्यानंद सरैक को पद्मश्री पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। उन्हें साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में श्रेष्ठ कार्य करने के लिए इस पुरस्कार से नवाजा जाएगा।
 
राष्ट्रीय पद्म नागरिक सम्मान से अलंकृत किए जाने वाली देश की विभूतियों मे उनका नाम 102 स्थान पर है। इससे पहले लोक साहित्य के लिए संगीत नाटक अकादमी की ओर से 18 जनवरी 2018 को उन्हे राष्ट्रपति सम्मान भी मिल चुका है। गौरतलब हो कि जिला सिरमौर के राजगढ़ उपमंडल के 81 वर्षीय सरैक छोटी उम्र से ही लोक विधाओं के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।‌
 
अब तक वह 25 विषयों पर हस्तलिखित पुस्तकें तैयार कर चुके हैं, जिनमें से आठ प्रकाशित हो चुकी है। विद्यानंद सरैक ने कहा कि वह सैकड़ों सिरमौरी लोक गीतों व कविताओं के अलावा पहाड़ी बोली मे कई नाटक भी लिख चुके हैं।
 
इसके अलावा वह भर्तहरी, गीता व गीतांजलि जैसे हिंदी महाकाव्यों का हिंदी अनुवाद वह कर चुके हैं। इतना ही नहीं वर्ष 1957 में उन्होन आल इंडिया रेडियो पहली बार सिरमौरी गीत प्रस्तुत किया। हिमाचल के विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मेलों अथवा अन्य बड़े आयोजनों में नाटी व करयाला आदि सिरमौरी लोक विधाओं पर अपनी प्रस्तुति देते हैं।
 
साहित्य के लिए पद्मश्री अवार्ड हासिल करने वाले वह क्षेत्र के पहले शख्स है। उन्हें यही पुरस्कार मिलने से जिला सिरमौर में उत्साह की लहर है। आज ही इस बारे गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचना अथवा प्रेस नोट जारी किया गया। लोक संस्कृति के संरक्षक विद्यानंद सरैक को इससे पहले राष्ट्रीय संगीत एवं नाट्य अकादमी द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।
 
उन्होंने हिमाचली संस्कृति व लोक विद्याओं पर किताबें लिखी हैं और सांस्कृतिक ध्रुव धरोहरों पर गहन अध्ययन भी किया है। यहीं नहीं उन्होंने ट्रेडिशनल फोक जैसे ठोडा नृत्य , सिंहटू नृत्य , बड़ालटू नृत्य , हिमाचल की देव पूजा पद्धति और पान चढे़ सहित नोबल पुरस्कार विजेता रविंद्रनाथ टैगोर के गीतांजलि संस्करण से 51 कविताओं का सिरमौरी भाषा में भी अनुवाद किया। 
 
इसके अलावा उन्होंने बच्चों का फोटो ड्रामा  भूरे एक रोटी के अलावा समाधान नाटक, जो कि सुकताल पर आधारित है का भी मंचन किया है। विद्यानंद सरैक अपनी सांस्कृतिक मंडली स्वर्ग लोक नृत्य मंडल के साथ मिलकर व देश-विदेश में कई मंचों पर हिमाचली संस्कृति की छाप छोड़ चुके हैं।
 
विद्यानंद सरैक को इससे पहले भी कई प्रदेशों में व संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है, जिनमें पंजाब कला शास्त्री अकादमी द्वारा लोकनृत्य ज्ञान लोक साहित्य पुरस्कार भी शामिल है। उधर, चंबा रुमाल को नई बुलंदियों पर पहुंचाने वाली चंबा की ललिता वकील को कला के क्षेत्र में 50 वर्षों की मेहनत का फल मिला है। उन्हें 2018 में नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया था।
 
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय भारत सरकार की ओर से महिला दिवस के मौके पर कार्यक्रम में देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर से पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। चंबा रुमाल की गुरु ललिता वकील चंबा की अकेली महिला हैं, जिन्हें तीसरी मर्तबा भारत सरकार ने राष्ट्रीय पुरस्कार से नवाजा है।
 
चंबा शहर के चौंतड़ा मोहल्ला निवासी ललिता वकील पत्नी एमएस वकील को चंबा रुमाल में महारत हासिल है। ललिता वकील को 1993 में तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने सम्मानित किया था। वर्ष 2012 में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शिल्प गुरु सम्मान से सम्मानित किया।
 
ये सम्मान पाने वाली ललिता वकील इकलौती हिमाचली हस्तशिल्पी हैं। 2017 में महिला एवं बाल विकास विभाग के सौजन्य से मेनका गांधी ने अंतरराष्ट्रीय क्राफ्ट अवार्ड से महिला गुरु के तौर पर प्रदान किया था। बकौल ललिता वकील चंबा रुमाल की कला को आने वाली पीढ़ियों को भी रूबरू करवाने के लिए वह अपने घर में नि शुल्क लड़कियों को कला की बारीकियां सिखाती हैं।
 
ऑनलाइन उन्होंने पद्मश्री पुरस्कार के लिए आवेदन किया। चंबा रुमाल अपनी अद्भुत कला और शानदार कशीदाकारी के कारण देश के अलावा विदेशी में भी लोकप्रिय है। चंबा रुमाल की कारीगरी मलमल, सिल्क और कॉटन के कपड़ों पर की जाती है। चंबा रुमाल पर की गई कढ़ाई ऐसी होती है कि दोनों तरफ एक जैसी कढ़ाई के बेल बूटे बनकर उभरते हैं। यही इस रुमाल की खासियत भी है।