पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को समेटे हुए हैं भाई बहन के रिश्तों का त्यौहार रक्षाबंधन 

पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को समेटे हुए हैं भाई बहन के रिश्तों का त्यौहार रक्षाबंधन 

यंगवार्ता न्यूज़ - राजगढ़   21-08-2021

इसे समझो ना रेशम का तार भैया, मेरी राखी का मतलब है प्यार भैया , साधना सरगम की आवाज में सजा तिरंगा फिल्म का यह गाना रक्षाबंधन और भाई-बहन के रिश्ते की खूबसूरती को बेहद गहराई से बयान करता है। रक्षाबंधन हिंदू धर्म उन त्योहारों में शुमार है, जो अपने आप में पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व को समेटे हुए हैं। 

इस दिन हर भाई सूनी कलाई बहन की ओर राखी बांधने की इंतजार करती है। परदेश में बसे भाई भी बड़ी बेसब्री से बहन की राखी की बाट जोहते हैं। बहन के घर उपहार लेकर भी रक्षा का धागा बंधवाते हैं।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ सगी बहन ही भाई को राखी बांध सकती है। मुंह बोले भाई और बहन में भी रक्षा बांधने-बंधवाने का दस्तूर काफी पुराना है। सही मायनों में रक्षाबंधन की परंपरा ही उन बहनों ने शुरू की है, जो सगी नहीं थीं। 

उन्होंने अपनी रक्षा के लिए मुंह बोले भाई को राखी बांधकर जो परंपरा शुरू की, वह आज रक्षाबंधन का त्योहार बनकर बदस्तूर जारी है। राखी का त्योहार कब शुरू हुआ, इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

लेकिन भविष्य पुराण के अनुसार, इसकी शुरुआत देव-दानव युद्ध से हुई थी। उस युद्ध में देवता हारने लगे। भगवान इंद्र घबरा कर देवगुरु बृहस्पति के पास पहुंचे। वहां बैठी इन्द्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। 

उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। उस अभिमंत्रित धागे की शक्ति से देवराज इंद्र ने असुरों को परास्त कर दिया।

यह धागा भले ही पत्नी ने पति को बांधा था, लेकिन इसे धागे की शक्ति सिद्ध हुई और फिर कालांतर में बहनें भाई को रक्षा बाँधने लगीं। पौराणिक गाथाओं में राखी से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कहानी भगवान कृष्ण और द्रौपदी की है। 

शिशुपाल वध के समय श्रीकृष्ण इतने गुस्से में चक्र चलाया कि उनकी अंगुली घायल हो गई। उससे खून टपकने लगा। द्रौपदी ने खून रोकने के लिए अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर भगवान की अंगुली पर बांध दिया।

भगवान ने उसी समय पांचाली को वचन दिया कि वह हमेशा संकट के समय उनकी सहायता करेंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी चीरहरण के समय अपना वचन पूरा भी किया। रक्षाबंधन की कथा दानवराज बलि से भी जुड़ी है। 

राजा बलि ने 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग पर अधिकार जमाना चाहा। इससे देवराज इंद्र घबरा गए और उन्होंने भगवान विष्णु से प्रार्थना की।

तब भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का भेष धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। गुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान करने का वचन दे दिया। 

भगवान ने तीन पग में सारा आकाश पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। इस दान के बदले राजा बलि ने भगवान से हमेशा अपने सामने रहने का वचन ले लिया।

भगवान के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया। उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उसे रक्षाबन्धन बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ ले आयीं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। यह प्रसंग भी रक्षाबंधन मनाने की वजह बना। 

मध्यकालीन युग में यह त्योहार समाज के हर हिस्से में फैल गया। इसका श्रेय जाता है रानी कर्णावती को। उस वक्त चारों ओर एक दूसरे का राज्य हथियाने के लिए मारकाट चल रही थी।

मेवाड़ पर महाराज की विधवा रानी कर्णावती राजगद्दी पर बैठी थीं। गुजरात का सुल्तान बहादुर शाह उनके राज्य पर नजरें गड़ाए बैठा था। तब रानी ने हुमायूं को भाई मानकर राखी भेजी। 

हुमायूं ने बहादुर शाह से रानी कर्णावती के राज्य की रक्षा की और राखी की लाज रखी। इस त्योहार को देशभर में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं।

इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है। अमरनाथ की अति विख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन के दिन सम्पूर्ण होती है। महाराष्ट्र राज्य में यह त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है। 

इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। राजस्थान में राम राखी और चूड़ा राखी या लूंबा बांधने का रिवाज है। राम राखी सामान्य राखी से भिन्न होती है।

इसमें लाल डोरे पर एक पीले छींटों वाला फुंदना लगा होता है। यह केवल भगवान को ही बांधी जाती है। चूड़ा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है। तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनि अवित्तम कहते हैं। 

यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मणों के लिये यह दिन अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।

व्रज में हरियाली तीज (श्रावण शुक्ल तृतीया) से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मन्दिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं। रक्षाबंधन वाले दिन झूलन-दर्शन समाप्त होते हैं। 

यह सिरमौर सोलन व शिमला जिले में रक्षाबंधन के पावन पर्व पर बहने अपने भाईयो की कलाई पर रक्षा बंधन बांधती है वही पुरोहित द्वारा भी अपने यजमानो की कलाई पर रक्षाबंधन बांधने की परंपरा है

यह रक्षाबंधन वाले दिन सभी पुरोहित सुबह से ही इस कार्य के लिए अपने घर से निकले पडते है और अपने सभी यजमानो के घरों में जाकर पूरे परिवार को रक्षा सूत्र बांधते है और इसके साथ ही अभिमंत्रित चावल या सरसों के दाने अपने यजमानो को देते है इसके बदले मे यजमान यथा शक्ति अन्न धन का दान अपने पुरोहितों को देते है । यह परंपरा सदियों से चली आ रही है ।