मिसाल : मुस्लिम युवती का संस्कृत प्रेम , मजहब की बेडि़यां तोड़ कर रही शास्त्री

मिसाल : मुस्लिम युवती का संस्कृत प्रेम , मजहब की बेडि़यां तोड़ कर रही शास्त्री

यंगवार्ता न्यूज़ - ऊना 02-10-2020

पंडित होने की यह कोई शर्त नहीं कि आप ब्राह्मण कुल में ही जन्म लें। आप अचार, विहार और शिक्षा-दीक्षा से भी पंडित होने चाहिएं। अगर कोई हिंदू धर्म का व्यक्ति वेद ज्ञाता बने और उसे संस्कृत के श्लोक कंठस्थ हों, तो आप कहेंगे कि यह कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन अगर कोई मुस्लिम समुदाय का व्यक्ति हिंदू धर्म के ज्ञान के लिए शास्त्री करे, तो आप क्या कहेंगे।

मुस्लिम समुदाय में पैदा हुई एक युवती के लिए कुरान शरीफ जितनी पाक है, उतने ही पवित्र उसके लिए हिंदू धर्म के ग्रंथ भी हैं। विशेषकर संस्कृत ने उसे इस कद्र प्रभावित किया है कि वह अब केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गरली (कांगड़ा) से शास्त्री कर रही हैं।

राम और रहीम के नाम पर नफरत फैलाने वालों को बेशक यह बात रास न आए, लेकिन उपमंडल अंब की ग्राम पंचायत अंब टिल्ला की शहनाज बेगम का संस्कृत के प्रति प्यार कई लोगों को हैरत में डाल रहा है। शहनाज बेगम ने ऐसे घर में जन्म लिया, जहां संस्कृत व हिंदू धार्मिक ग्रंथ उसे विरासत में नहीं मिले।

अंब के एक निजी स्कूल से दस जमा दो तक की शिक्षा हासिल करने वाली शहनाज बेगम ने स्कूल में संस्कृत विषय रखा। बेशक उसके घर वालों ने भी कोई एतराज नहीं जताया। शहनाज को संस्कृत इस कद्र अच्छी लगी कि संस्कृत के श्लोक उसे कंठस्थ होने लगे।

दस जमा दो की परीक्षा पास करने के बाद शहनाज ने अपने पिता, जो कि राजस्व विभाग में कानूनगो के पद पर कार्यरत हैं, को शास्त्री करने की इच्छा जाहिर की। पिता ने भी यह नहीं सोचा कि उसके समुदाय वाले क्या कहेंगे, बल्कि बेटी की इच्छा को परवान चढ़ाने के लिए उसे केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गरली में दाखिला दिला दिया।

सुबह-सुबह जहां शहनाज के घर के आसपास कुरान की आयतें गूंजती हैं, तो शहनाज के घर से शहनाज जब अपनी पढ़ाई कर रही होती है, तो संस्कृत के श्लोक इस बात का बखूबी एहसास करवाते हैं कि अनेकता में एकता क्या है।

शहनाज कुरान शरीफ व हिंदू ग्रंथों में कोई फर्क नहीं करती, बल्कि उसका कहना है कि सभी धार्मिक ग्रंथ एक ही पैगाम देते हैं। 21वीं शताब्दी में भी जिस देश में मंदिर और मस्जिद अभी भी इनसान को धार्मिक कट्टरता में बांधे हुए हैं, वहीं शहनाज के संस्कृत से प्यार उन लोगों के लिए नजीर है, जो मजहबी जंजीरें अभी तक तोड़ नहीं पाए हैं।