शिरगुल के प्राचीन मंदिर शाया में दिवाली पर्व पर दो लाख का चढ़ा चढ़ावा : शेरजंग चौहान
दिवाली पर्व के उपरांत शिरगुल देवता के प्राचीन मंदिर शाया में रखे गए दान पात्र को खोला गया जिसमें दो लाख की राशि के चढ़ावे के रूप में प्राप्त हुई
यंगवार्ता न्यूज़ - राजगढ़ 12-11-2022
दिवाली पर्व के उपरांत शिरगुल देवता के प्राचीन मंदिर शाया में रखे गए दान पात्र को खोला गया जिसमें दो लाख की राशि के चढ़ावे के रूप में प्राप्त हुई। यह जानकारी शिरगुल देवता मंदिर समिति के मिडिया प्रभारी शेर जंग चौहान ने शनिवार को देते हुए कि मंदिर की आय की गणना हर माह की जाती है तथा इस बार दीवाली पर्व होने के कारण मंदिर में बीते वर्ष की अपेक्षा कम चढ़ावा प्राप्त हुआ है।
जिसमें प्रमुख कारण पड़वा अर्थात अमावस्या को ग्रहण लगना बताया गया है। मंदिर में एकत्रित राशि बैंक में जमा की जाती है ,जिसका उपयोग मंदिर के निर्माण व अन्य विकास कार्य के लिए किया जाता है। जानकारी दी कि मंदिर की शिवस्वी समिति के अध्यक्ष अमर सिंह की अध्यक्षता में गणना का कार्य आरंभ किया गया।
जिसमें उपाध्यक्ष मुकेश, कोषाध्यक्ष संजीव, सचिव अनिल कुमार, सदस्य प्रताप सिंह के अतिरिक्त पुजारी पुनीत कुमार शामिल हुए थे। बताया कि दिवाली के पर्व पर मंदिर में आयोजित दो दिवसीय मेले के दौरान करीब 15 हजार श्रद्धालुओं द्वारा शिरगुल देवता का आर्शिवाद प्राप्त किया।
जिसमें दिवाली और भैयादूज को मंदिर खुला रहा जबकि गोवर्धन पूजा अर्थात पड़ेई को ग्रहण के कारण बंद रहा । इस मौके पर करीब सातः क्विंटल चावल और डेढ क्ंिवटल अखरोट श्रद्धालुओं द्वारा शिरगुल देवता को भेंट किए गए।
शेरजंग चौहान ने बताया कि शिरगुल देवता की जन्मस्थली शाया में और तप स्थली चूड़धार मानी जाती है। इन दोनों मंदिरों में वर्ष में पड़ने वाले चार बड़े साजे अर्थात दिवाली, बैशाखी, हरियाली और मकर सक्रांति को देवता के दर्शन करने का विशेष महत्व होता है।
वर्ष में पड़ने वाले चार साजे के अतिरिक्त हर माह को पड़ने वाली सक्रांति को समिति द्वारा श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का आयोजन भी किया जाता है।
उन्होने बताया कि शिरगुल देवता का इस गांव में प्रादुर्भाव हुआ था इस कारण इस मंदिर में अब बाहरी क्षेत्रों से लोगों और पर्यटकों का दर्शन करने के लिए आना भी प्रारंभ हो गया है।
उल्लेखनीय है कि शिरगुल देवता की शिमला, सिरमौर और सोलन के नौ क्षेत्रों में अपने कुलदेवता के रूप में पूजा की जाती है जिसे स्थानीय भाषा में नोतबीन कहा जाता है।