हिमाचल की सुक्खू सरकार के खिलाफ कोर्ट जायेंगे शिमला के बागवान जनिए वजह.....
माचल प्रदेश के बागवान राज्य की सुक्खू सरकार को कोर्ट में घसीटने की तैयारी कर रहे हैं। कोटगढ़ हॉर्टीकल्चर एंड एन्वायर्नमेंट सोसायटी ने बागवानी मंत्री को पत्र लिखकर एपीएमसी एक्ट 2005 और लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट 2009 को उसकी मूल भावना के हिसाब से लागू करने की मांग
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 09-02-2023
हिमाचल प्रदेश के बागवान राज्य की सुक्खू सरकार को कोर्ट में घसीटने की तैयारी कर रहे हैं। कोटगढ़ हॉर्टीकल्चर एंड एन्वायर्नमेंट सोसायटी ने बागवानी मंत्री को पत्र लिखकर एपीएमसी एक्ट 2005 और लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट 2009 को उसकी मूल भावना के हिसाब से लागू करने की मांग की है।
सोसायटी के अध्यक्ष हरि चंद रोच और यूथ ग्रोवर एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र ठाकुर ने कहा कि इन दोनों एक्ट में बागवानों को कमीशन एजेंट के शोषण से बचाने का प्रावधान है।
मगर, आज तक किसी भी सरकार ने इन्हें लागू करने का प्रयास नहीं किया। यही वजह है कि बागवान सरेआम लूटा जा रहा है। हरि चंद रोच ने बताया कि दोनों एक्ट यदि लागू नहीं किए गए तो उन्हें मजबूरन कोर्ट का रास्ता अपनाना पड़ेगा। सेब बागवान सरकार से कुछ नहीं मांग रहा,
बल्कि एक्ट लागू करके कानूनी संरक्षण और अल्टरनेटिव मार्केट, फार्म गेट मार्केट, कॉम्पिटिटिव मार्केट, वैल्यू एडिड मार्केट चाहता है, ताकि बागवान अपने उत्पाद बेच सकें।
गौरतलब है कि किसानों-बागवानों को लूट से बचाने के लिए लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट 2009 और हिमाचल प्रदेश कृषि एवं उद्यानिकी उपज विपणन ( विकास एवं विनियमन ) ( एपीएमसी ) एक्ट 2005 बनाया गया है। मगर, इन एक्ट के कई प्रावधान एक से डेढ़ दशक बाद भी लागू नहीं किए गए हैं।
इससे मंडियों में बागवान शोषण का शिकार हो रहे हैं। बिचौलिए चांदी कूट रहे हैं। बता दें कि एपीएमसी एक्ट की धारा 39 की उपधारा 19 में किसानों की उपज बिकने के एक दिन के भीतर उन्हें पेमेंट दिए जाने का प्रावधान है।
एक्ट के अनुसार, यदि कोई कमीशन एजेंट एक दिन में पेमेंट नहीं करता तो उस सूरत में एपीएमसी कमीशन एजेंट की फसल को जब्त करके उसकी ऑक्शन करा सकती है। उस ऑक्शन में मिलने वाले पैसे का भुगतान किसान को करने का प्रावधान है। सच्चाई यह है कि कई बागवानों को 2 से 3 साल बाद भी बागवानों को पेमेंट नहीं दी जा रही है।
एक्ट की धारा 28(2) में किसानों का हर एक उत्पाद ओपन बोली करके बेचे जाने का प्रावधान है। मगर, राज्य की कई मंडियों में आज भी तोलिए , सेपरेटर और रुमाल के नीचे सेब के भाव किए जाते हैं। एपीएमसी एक्ट में 5 से 8 रुपए अधिकतम मजदूरी की दरें तय हैं। वहीं प्रदेश की 90 फीसदी मंडियों में 15 से 25 रुपए प्रति पेटी मजदूरी काटी जाती है। इससे बागवानों की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिसा बिचौलिए लूट रहे हैं।
लीगल मेट्रोलॉजी एक्ट के अनुसार, किसानों का हर एक उत्पाद माप-तोल करके बिकना चाहिए, लेकिन कानून के इस प्रावधान को भी कमीशन एजेंटों के दबाव में लागू नहीं किया जा रहा। देश और पूरी दुनिया में सेब किलो के हिसाब से बिकता है, लेकिन हिमाचल में कुल्लू मंडी को छोड़कर कहीं भी मोलभाव करके सेब नहीं बेचा जाता।
एक्ट के मुताबिक, जिस अधिकतम रेट पर बोली छूटती है, उसमें कटौती नहीं की जा सकती, लेकिन कुछ मंडियों में कटौती के नाम पर भी बागवानों से भद्दा मजाक किया जा रहा है। कहीं 20, कहीं 50 तो कहीं 100 रुपए की कटौती की जा रही है, यानी सेब की बोली 1600 में छूटने के बाद बागवानों को कभी 1500, कभी 1550 या फिर 1580 रुपए थमा दिए जाते हैं।
इस अवैध कटौती को रोकने में भी मार्केटिंग बोर्ड और एपीएमसी नाकाम रहा है। प्रोग्रेसिव ग्रोवर एसोसिएशन ( पीजीए ) के अध्यक्ष लोकेंद्र बिष्ट ने बताया कि वह जल्द पीआईएल दायर करने जा रहे हैं। उन्होंने एडवोकेट को पीआईएल तैयार करने को बोल दिया है। उन्होंने बताया कि बागवान अब कोर्ट जाने को मजबूर हो गए हैं।