हिमाचल में थमे 15,500 ट्रकों के पहिये, ट्रक मालिकों को सताने लगी बैंक की किस्त की चिंता
हिमाचल प्रदेश में दाड़लाघाट और बरमाणा में एसीसी के सीमेंट प्लांट बंद हो जाने से माल ढुलाई में लगे हजारों ट्रांसपोर्टरों पर बड़ा संकट खड़ा हो गया है
यंगवार्ता न्यूज़ - सोलन 17-12-2022
हिमाचल प्रदेश में दाड़लाघाट और बरमाणा में एसीसी के सीमेंट प्लांट बंद हो जाने से माल ढुलाई में लगे हजारों ट्रांसपोर्टरों पर बड़ा संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश में कुल 15,500 छोटे-बड़े ट्रक कच्चा और तैयार माल की ढुलाई करने में लगे हुए है। इनमें से करीब 12,000 ट्रक ऐसे है जो अभी कर्ज पर चल रहे है। ट्रांसपोर्टर 50 से 80 हजार रुपये प्रति माह लोन की किस्त दे रहे हैं।
अब प्लांट बंद होने से ट्रकों की किस्त भरने का संकट खड़ा हो जाएगा। हर माह में एक ट्रक को सीमेंट कंपनी में छह से सात चक्कर मिलते हैं। सात चक्कर लगाने के बाद एक ट्रक ऑपरेटर अपने सभी खर्च को काटकर 25 से 30 हजार रुपये बचा रहा है। इससे वह अपने परिवार के दो से चार सदस्यों, बच्चों का स्कूल समेत अन्य घर के खर्चे पूरा कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार सीमेंट प्लांट में दाड़लाघाट से करीब 3,700, बिलासपुर के 3,800 और नालागढ़ के 8,000 ट्रक कच्चा और तैयार माल की ढुलाई में लगे हुए है।
बाघल लैंड लूजर के पूर्व अध्यक्ष रामकृष्ण शर्मा ने बताया कि प्रदेश में सीमेंट कंपनियों से करीब 15,500 ट्रक जुड़े हैं। इनमें 80 फीसदी ट्रक बैंकों से लोन पर चल रहे हैं। सीमेंट प्लांट कंपनियों में आम लोगों के ही नहीं बल्कि पार्टी से जुड़े कई नेताओं के ट्रक भी हैं। दाड़लाघाट अंबुजा प्लांट बंद करने पर ट्रांसपोर्टरों ने पांचवां बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया है। कंपनी प्रबंधक के खिलाफ शुरू हुआ यह आंदोलन वर्तमान में शांतिपूर्ण है, लेकिन आगामी दिनों में उग्र रूप में बदल सकता है।
इससे पहले दाड़लाघाट में 1999, 2005, 2006 और 2010 में बड़े आंदोलन हो चुके हैं। सबसे बड़ा आंदोलन 2010 में 45 दिन तक चला था। पहले हुए सभी आंदोलन की शुरुआत ट्रांसपोर्टरों की ओर से की गई थी। लेकिन, यह पहला ऐसा आंदोलन है, जिसकी शुरुआत सीमेंट प्लांट बंद होने से आरंभ हुई है और ट्रकों के पहिये थम गए हैं। इससे पहले दाड़लाघाट में अंबुजा कंपनी बंद होने की तीन आंदोलन ट्रांसपोर्टर जीत चुके हैं। सबसे बड़ा आंदोलन 2010 में हुआ था। इस दौरान अंबुजा कंपनी को मालभाड़ा बढ़ाने के लिए ट्रांसपोर्टरों ने हड़ताल कर दी थी। यह आंदोलन 45 दिन तक चला था।
इसके बाद कंपनी को ट्रांसपोर्टरों के आगे झुकना पड़ा था और कंपनी ने इस आंदोलन के बाद मालभाड़ा बढ़ाया था। 2005 और 2006 में भी इसी प्रकार का आंदोलन हुआ था, जो 12 से 15 दिन तक चला था। इसमें भी ट्रांसपोर्टरों की जीत हुई थी। जबकि, 1999 में हुए आंदोलन में सोसायटी गठन और अंबुजा कंपनी के चल रहे ट्रकों पर रोक लगाने के लिए किया गया था।
इस आंदोलन में कंपनी को ट्रांसपोर्टरों ने झुकाया था। अब फिर वही हालात बनने शुरू हो गए हैं। उधर, एसडीटीओ अध्यक्ष जयदेव कौंडल ने बताया कि कंपनी की ओर से गलत फैसला लिया गया है। कंपनी पुराने इतिहास को जान ले। यदि ट्रांसपोर्टरों की बात कंपनी ने नहीं मानी तो आगामी दिनों में उग्र आंदोलन हो सकता है।