यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 06-12-2020
केंद्र सरकार द्वारा अगर कृषि कानून को निरस्त नहीं किया गया तो आठ दिसम्बर को भारत बंद में हिमाचल प्रदेश किसानों की व्यापक भागीदारी सुनिश्चित होगी।
हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तंवर, राज्य कोषाध्यक्ष सत्यवान पुण्डीर, अखिल भारतीय अधिवक्ता यूनियन के प्रदेश के पूर्व राज्य सचिव निरंजन वर्मा, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की प्रदेशाध्यक्ष डॉ. रीना सिंह सहित विभिन्न जनवादी संगठनों ने रविवार को जारी संयुक्त बयान में कही है।
कुलदीप तंवर का कहना है कि किसान देश की रीढ़ की हडडी मानी जाती है। किसान फसलें उगाता है जिससे समूचे देश का भरण-पोषण होता है। केंद्र सरकार द्वारा नया कृषि कानून लाकर किसानों के साथ घोर अन्याय किया है जिसे किसी भी स्तर पर सहन नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के कृषि कानून पूरी तरह किसान विरोधी हैं।
हिमाचल में एमएसपी के तहत केवल 3 फसलें गेहूं, धान व मक्की ही आती हैं, लेकिन इसके लिये एफसीआई द्वारा कोई सरकारी खरीद न होने से किसानों को कोई लाभ नहीं मिलता। जबकि प्रदेश में मक्की की कुल 7 लाख मीट्रिक टन से अधिक पैदावार होती है जिसमें से 3 लाख मीट्रिक टन मक्की बाजार में बेची जाती है लेकिन एफसीआई की ओर से खरीद व्यवस्था न होने से ओने पौने दामों पर बेचना पड़ता है।
निरंजन वर्मा ने किसान आंदोलन का समर्थन करते हुए कहा कि अगर केंद्र सरकार ने किसानों की मांगें पूरी नहीं की तो प्रदेश के हर जिले से किसानों के साथ अन्य तबकों से भी लोग दिल्ली जाएंगे और आंदोलन में भाग लेंगे। उन्होंने कहा कि कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर दिल्ली में पंजाब और हरियाणा सहित देशभर के किसान डेरा डालकर बैठे हैं।
जिसमें हिमाचल के किसान भी इस आंदोलन शामिल हैं। उन्होने कहा कि 2014 के चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हिमाचल में अनेक रैलियों में घोषणा की थी कि यहां के किसानों को फल, सब्जी, दूध, ऊन, शहद, आदि उत्पादों पर भी समर्थन मूल्य मिलना चाहिए लेकिन आज सत्ता में आने के बाद एमएसपी को ही खत्म करने का काम किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि अधिनियम से हिमाचल के किसान और बागवान भी इससे प्रभावित होंगे क्योंकि हिमाचल की मुख्य नगदी फसल फल और सब्जियां हैं. इनकी खरीद पर किसी तरह का समर्थन मूल्य नहीं दिया जाता है. इसके अलावा न ही इनके प्रोसेसिंग और स्टोरेज की व्यवस्था है।