पहली बार हिमाचल में हाइड्रोपोनिक्स विधि से उगाई जाएगी स्ट्राबेरी
पहली बार हाइड्रोपोनिक्स विधि से स्ट्राबेरी उगाई जाएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद शिमला हाइड्रो पोनिक्स विधि से पौधे तैयार कर सूबे के स्ट्राबेरी उत्पादकों को बांटेगा
यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 31-05-2022
पहली बार हाइड्रोपोनिक्स विधि से स्ट्राबेरी उगाई जाएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद शिमला हाइड्रो पोनिक्स विधि से पौधे तैयार कर सूबे के स्ट्राबेरी उत्पादकों को बांटेगा। पहली बार शिमला के ढांडा फार्म में पौध तैयार की जा रही है। इसे जल्द बागवानों को उपलब्ध करवाया जाएगा।
बागवानों के लिए स्ट्राबेरी के पौधों की मांग अधिक है, लेकिन इसकी आपूर्ति कम हो रही है। अब इसकी पौध तैयार होने से बागवानों की समस्या काफी हद तक कम होगी।
देश में स्ट्राबेरी की खेती 1960 में सर्वप्रथम उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश के कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में की गई थी। राज्य में इसका उत्पादन पिछले वर्ष 550 टन था। राज्य में कम से कम 250 उत्पादक 60 हेक्टेयर से कम पर स्ट्राबेरी पैदा कर रहे हैं। स्ट्राबेरी अब राज्य के सिरमौर, कुल्लू, ऊना, शिमला और कांगड़ा जिलों में पैदा हो रही है।
स्ट्राबेरी की फसल फरवरी के अंत में बाजार में आनी शुरू होती है। शुरुआती किस्मों को बाजार में 100 से 120 रुपये प्रतिकिलो दाम मिलते हैं। स्ट्राबेरी की खेती के लिए अधिक श्रम और पूंजी की आवश्यकता होती है। फल बाजार में तुरंत बेचना पड़ता है। स्ट्राबेरी के पौधे लगाने का सही समय 10 सितंबर से 15 अक्तूबर तक है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार पूरी दुनिया में स्ट्राबेरी की 600 किस्में पाई जाती हैं। भारत में किसान मुख्य रूप से विंटर डाउन, विंटर स्टार, चांडलर, स्वीट चार्ली, ब्लैक मोर, एलिस्ता आदि किस्मों उगाते हैं। स्ट्रॉबेरी में विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, फोलेट, मैग्नीशियम और पोटाशियम जैसे पोषक तत्व भरपूर हैं। ये शरीर की कई समस्याओं को दूर करने में लाभकारी हैं। स्ट्राबेरी में उपस्थित पोटैशियम शरीर को हार्ट अटैक से बचाने में मदद करता है।
आईसीएआर शिमला केंद्र के अध्यक्ष डॉ. कल्लोल प्रमाणिक कहते हैं कि हाइड्रो पोनिक्स विधि से स्ट्राबेरी की पौध तैयार के बागवानों की जरूरत पूरी की जा सकती है। इससे बागवानों की आय दोगुना की जा सकेगी। किचन गार्डन में भी इस विधि से स्ट्राबेरी पैदा कर सकते हैं।