यंगवार्ता न्यूज़ - शिमला 01-05-2023
अपने संसाधन बढ़ाने के लिए हिमाचल द्वारा लगाए गए वाटर सेस का बेशक केंद्र सरकार ने विरोध किया हो, लेकिन हिमाचल को इस रास्ते पर उम्मीद भी दिख रही है। सारे विवाद के बावजूद कई बड़ी विद्युत उत्पादक कंपनियों ने हिमाचल सरकार के पास वाटर सेस के लिए रजिस्ट्रेशन करवाई है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक भारत सरकार की पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग एनटीपीसी और एनएचपीसी समेत 27 विद्युत उत्पादक कंपनियों ने अब तक रजिस्ट्रेशन करवाया है। एनएचपीसी चंबा में चमेरा जैसे बड़े प्रोजेक्ट चला रही है, जबकि हिमाचल में स्थित कोलडैम बिजली प्रोजेक्ट एनटीपीसी का है। इस रजिस्ट्रेशन के लिए सिर्फ 500 रुपए फीस है।
हालांकि केंद्र के विरोध के अलावा हिमाचल हाई कोर्ट में भी राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ केस चल रहा है। सबसे पहले जीएमआर होली बिजली प्रोजेक्ट ने याचिका दायर की थी, लेकिन तकनीकी आधार पर इसे वापस ले लिया गया था। इसके बाद एलायन दुहांगन बिजली प्रोजेक्ट याचिका पर राज्य और केंद्र सरकार को चार हफ्ते का नोटिस हुआ है। राज्य सरकार इसका जवाब दे रही है। हालांकि हाई कोर्ट ने भी इसी केस की सुनवाई के दौरान रजिस्ट्रेशन करवाने को भी कहा था। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने अपने पहले बजट सत्र में वाटर सेस लगाने को लेकर कानून बनाया था।
केंद्र सरकार ने इसका विरोध यह कहते हुए किया है कि यह असंवैधानिक है। केंद्र सरकार का तर्क है कि कोई भी राज्य अपने यहां ऐसा फैसला नहीं ले सकता, जिसके कारण दूसरे राज्यों में बिजली के टैरिफ में वृद्धि हो जाए। जबकि हिमाचल सरकार का तर्क है कि उन्होंने टैक्स बिजली पर नहीं, बल्कि हिमाचल के पानी पर लगाया है और पानी को रोका भी नहीं गया है। इसलिए अब यह मामला पूरी तरह लीगल लड़ाई का है।
वाटर सेस लगाने का कानून बनाने वाले जल शक्ति विभाग के मंत्री एवं उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने भी साफ किया है कि हिमाचल सरकार को अपने क्षेत्राधिकार में फैसले लेने का अधिकार है और इन फैसलों को असंवैधानिक कहने का अधिकार सिर्फ कोर्ट को है। इसलिए राज्य सरकार कानूनी तरीके से ही इस विवाद का जवाब देगी। गौरतलब है कि हिमाचल से पहले उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर ऐसा फैसला ले चुके हैं। इसके अलावा नॉर्थ ईस्ट में सिक्किम ने भी इसी तरह का टैक्स लगाया हुआ है। राज्य सरकार का अब कहना है कि केंद्र सरकार ने इन तीन राज्यों में इस फैसले का विरोध करने के लिए पत्र नहीं लिखा, जबकि हिमाचल का पक्ष सुने बिना कंपनियों को ही पत्र लिख दिया गया।