कोरोना काल के बाद देश-विदेश में कांगड़ा चाय की बढ़ी डिमांड

देश-विदेश में कोरोनाकाल के बाद कांगड़ा चाय की डिमांड बढ़ गई है, जिससे कंपनी को बड़ा लाभ मिला है। हालांकि पूर्व में कई बार हालत बिगड़ते

कोरोना काल के बाद देश-विदेश में कांगड़ा चाय की बढ़ी डिमांड

यंगवार्ता न्यूज़ - धर्मशाला   22-05-2022

देश-विदेश में कोरोनाकाल के बाद कांगड़ा चाय की डिमांड बढ़ गई है, जिससे कंपनी को बड़ा लाभ मिला है। हालांकि पूर्व में कई बार हालत बिगड़ते भी रहे, लेकिन मौजूदा दौर कांगड़ा चाय के लिए अच्छा चल रहा है। देश-विदेश में कांगड़ा टी की मांग बढऩे लगी है। 

चाय की पत्तियों का तुडान करने वाले श्रमिकों की कमी जरूर कंपनियों को खलती है। यदि श्रमिक मांग के हिसाब से मिल जाएं तो काम में और इजाफा होगा। पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष प्रति किलोग्राम चाय का रेट भी 50 रुपए अधिक मिल रहा है। 

विदेशों में जर्मनी और नीदरलैंड में तीन हजार किलोग्राम चाय कांगड़ा से भेजी गई है। इस बार रेट भी ज्यादा मिला है, लेकिन कांगड़ा में श्रमिकों की कमी अभी भी है। धर्मशाला चाय उद्योग के प्रबंधक अमनपाल सिंह ने बताया कि कोरोना काल में नुकसान के बजाय फायदा हुआ है। 

उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष उत्पादन समय पर शुरू हो गया था। पिछले वर्ष की अपेक्षा प्रति किलोग्राम रेट भी 50 रुपए अधिक मिल रहा है। बरसात में बारिश अच्छी होने से उत्पादन भी अधिक हुआ है। सितंबर के मध्य से बारिश न होने की वजह से कुछ कमी आई है, लेकिन फिर भी उत्पादन पिछले वर्ष की अपेक्षा अधिक है।

हिमाचल केरल से सीख ले तो यहां के किसानों की भी तकदीर बदल सकती है। चीड़ के जंगल उगाने के बजाए केरल के मुनार की तरह जंगलों को चाय के बागानों में बदल दिया जाए तो न केवल हजारों लोगों के लिए रोजगार के द्वार खुलेंगे बल्कि पर्यटकों का आकर्षण भी बढ़ेगा।

चाय बागानों में पत्तियों के तुड़ान के लिए आज भी कांगड़ा चाय उत्पादन करने वाली कंपनियां बंगाल की लेवर पर निर्भर है। पहाड़ के लोगों ने दशकों बाद भी इस काम को अपनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। 

जिसका असर यह हुआ कि चाय उत्पादन बढऩे के बजाए घटा है। न ही सरकारी स्तर पर कभी नई प्लांटेशन करवाने के लिए प्रयास हुए हैं, जिसके चलते कांगड़ा चाय का कारोबार सिमट सा गया है।