गिरिपार क्षेत्र में मनाई जाने वाली बुढ़ी दीवाली का पर्व समाप्त

गिरिपार क्षेत्र में मनाई जाने वाली बुढ़ी दीवाली का पर्व समाप्त

यंगवार्ता न्यूज़ - शिलाई   18-12-2020

पुश्तेनी परम्परा अनुसार मनाए जाने वाला बुढ़ी दीवाली पर्व विधिवत समाप्त हो गया है उतर-पूर्व भारत के मध्य हिमालय में बसने वाली खशिया जाती की संस्कृति में बूढी बुढ़ी दीवाली उत्सव अनूठा व रोमांचक है वर्तमान समय में विभिन्न खशिया खुंदो द्वारा 3 से 9 दिनों तक क्रमवध तरीके से पर्व को मनाया जाता है। 

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू, शिमला, सोलन, सिरमोर जिलों के अतिरिक्त उतराखंड प्रदेश के समूचे भाबर-जोंसार क्षेत्र में बुढ़ी दीवाली पर्व मनाया जाता है। बुढ़ी दीवाली पर्व मध्य हिमालय में लगभग 5 हजार वर्षों से अधिक पुरानी परम्परा है। 

पर्व को बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है मागशिर्ष अमावस्या की रात को ग्रामीण साजा आगन में एकत्रित होकर घनघोर अँधेरे में मशाले जलाकर पर्व का आगाज करते है तथा स्थानीय देवी देवताओं से गावं, क्षेत्र, प्रदेश व देश में आपसी भाईचारा, खुशहाली व शांति बनी रहे, ऐसी प्रार्थना करके आगाज करते है। 

बुढ़ी दीवाली पर्व की पृष्ठभूमि खाशिया व नाग जाती युद्ध से मिलती है। कुल्लू के निरमंड में खशिया–नाग जाती युद्ध की झलकियों का पर्व के दोरान नाट्य मंचन होता है तथा लोगों को बुढ़ी दीवाली उत्सव के महत्वपूर्ण महत्व से अवगत करवाया जाता है। 

पर्व का दूसरा दिन खाशिया जाती की लड़की भियुरी से जुड़ा है।राजा जालन्धर भियुरी को हरण करके अपने राजमहल लेकर गए थे।

दीवाली पर्व पर माइके जाने की जिद करने पर भियुरी को राजमहल से अकेला घोड़े पर सवार करके हिमालय की पहाड़ियों पर भेज दिया गया अचानक घोडा ढंगार में गिरने से भियुरी की मोत हो गई। 

जिसके बाद पर्व के दौरान  भियुरी विरह गीत गाकर याद किया जाता है। भियुरी विरह गीत बिना बाध्य यंत्रो के गाया जाता है। विरह गीत को गावं की सखिया गाती है गीत गाने के बाद सखियों को ड्राई व्यंजन मुड़ा, शाकुली, अखरोट देने की परम्परा है। 

बुढ़ी दीवाली पर्व पर पहले दिन से लेकर समापन तक मेहमानों की आवभगत चली रहती है।  पारंपरिक व्यंजन व रसीले पकवानों की महक से क्षेत्र सुगन्धित रहता है। 

मेहमानों को मिठाई की जगह ड्राई व्यंजन मुड़ा, शाकुली, अखरोट, चियुड सहित दर्जनों व्यंजन परोसे जाते है। पारंपरिक परिधानों में हारूल, लोकनाटी, फोक नृत्य, लोक नृत्य, नाटक मंचन का दौर रात-दिन चलता रहता है। 

क्षेत्रीय लोगों सहित बाहरी राज्यों से आए मेहमान हर्षो उल्लास के साथ आनदं लेते है। इस दोरान मध्य हिमालय में रहने वाली सभी उपजातियां अपना योगदान देकर पर्व को अधिक रोमांचक बनाते है।