हिमाचल प्रदेश के आईआईटी के शोधकर्ताओं को मिली कामयाबी , बिच्छू बूटी तैयार किया कपड़ा
यंगवार्ता न्यूज़ - काँगड़ा 30-12-2021
यदि हिमाचल प्रदेश के आईआईटी मंडी के शोधकर्ता को जुगत काम आई और उनका प्रयोग सफल रहा तो हिमाचल में बहुतायत में पाए जाने वाली बिच्छू बूटी ग्रामीणों की आमदनी का जरिया बन सकता है।
आईआईटी मंडी के शोधकर्ता ने स्टार्टअप के तहत हिमालय क्षेत्र में पाई जाने वाली बिच्छू बूटी (अर्टिगा पार्वीफ्लोरा) से बने धागे को कॉटन के साथ मिश्रित कर उच्च गुणवत्ता फैब्रिक बनाने में सफल रहे हैं। यह फैब्रिक (कपड़ा) सर्दी में शरीर को गर्म और गर्मी में ठंडा रखेगा। रंगाई में प्राकृतिक रंगों का उपयोग होगा।
अब शोधकर्ता बिच्छू बूटी के अलावा हिमालय क्षेत्र में पाए जाने वाली घास की कई किस्मों से भी फाइबर-फैब्रिक बनाने की तकनीक पर काम कर रहे हैं। यदि ऐसा हुआ तो हिमाचल के जंगलों को बिच्छू बूटी की झाड़ियों से छुटकारा मिलेगा और पौधरोपण क्षेत्र का दायरा भी बढ़ेगा।
भविष्य के लिए इस फैब्रिक के उत्पादन में लगी कंपनियों के लिए बिच्छू बूटी एकत्र करवाने के लिए स्वयं सहायता समूहों और महिला मंडलों की मदद लिए जाने की योजना है।
इससे रोजगार के अवसर सृजित होने से लोगों की आर्थिकी सुदृढ़ होगी। बता दें कि हिमाचल सहित हिमालय क्षेत्र के कई राज्यों में बिच्छू बूटी साग या फिर दवा बनाने तक ही सीमित थी। इसमें विटामिन ए, सी, आयरन और कैल्शियम पाया जाता है। सिरमौर , चंबा, मंडी, कुल्लू, लाहौल-स्पीति, शिमला, रामपुर की बिछू बूटी सर्वोत्तम मानी जाती है।
इसके पत्तों पर कांटे होने के कारण इनके चुभने से जलन होती है। लोग इस पौधे को बेकार मानते हैं, जबकि इससे बने फैब्रिक की कीमत 200 से 250 रुपये मीटर तक हो सकती है। उधर, असिस्टेंट प्रोफेसर बाटनी डॉ. तारा देवी सेन ने कहा कि बिच्छू बूटी का पौधा तीन हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में यह पाया जाता है।
औषधीय गुणों से भरपूर यह पौधा हिमाचल प्रदेश के अधिकांश इलाकों में अधिक मात्रा में पाया जाता है। आईआईटी मंडी के निदेशक जीत कुमार चतुर्वेदी ने कहा कि शोधकर्ता बिच्छू बूटी से बने धागे को कॉटन के साथ मिश्रित कर उच्च गुणवत्ता का फैब्रिक बनाने में सफल रहे हैं।
यह फैब्रिक कॉटन की अपेक्षा कम सिकुड़ता है। बिच्छू बूटी का उपयोग फाइबर के तौर पर होने से हिमालय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बिच्छू बूटी पाई जाती है।