हाथरस कांड ने दिला दी फेरूपुर की याद, 600 लोगों का कराया था डीएनए  टेस्ट

हाथरस कांड ने दिला दी फेरूपुर की याद, 600 लोगों का कराया था डीएनए  टेस्ट

यंगवार्ता न्यूज़ - देहरादून   01-10-2020

उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक बेटी के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके बाद की गई हत्या की घटना ने एक बार फिर से फेरूपुर की घटना की याद दिला दी। यहां की एक बेटी के साथ भी दरिंदों ने हैवानियत की हद पार कर दी थी। 

बेटी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी थी।घटना को छह साल हो गए, लेकिन आज तक आरोपी कानून के शिकंजे में नहीं फंस सके। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई भी केस को सुलझाने में असफल रही है। 

सात जनवरी 2014 की सुबह रोशनाबाद के एक विद्यालय में सातवीं कक्षा में पढ़ने वाली बालिका की फेरुपुर में दुष्कर्म के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई थी।

किशोरी सुबह शौच करने के लिए जंगल गई थी। हत्याकांड को लेकर कई माह तक आंदोलन चला था। उत्तराखंड पुलिस के तमाम दिग्गजों को गुत्थी सुलझाने में लगाया गया, पर आरोपियों का कोई सुराग नहीं लगा। 

हत्याकांड को लेकर मचे घमासान के बीच जांच सीबीआई को सुपुर्द कर दी गई थी। सीबीआई ने भी शुरूआती दिनों में बेहद तेजी से काम किया। प्रदेश के सबसे सनसनीखेज हत्याकांड में तमाम वैज्ञानिक और अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया। 

शक के दायरे में आए करीब छह सौ लोगों का डीएनए टेस्ट कराया गया। नार्को और पोलीग्राफ जैसी तकनीक का इस्तेेमाल किया गया। यहीं नहीं पीड़िता के पिता, मां और भाइयों को गुजरात ले जाकर नार्को टेस्ट तक कराया गया, लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी अब तक हत्याकांड की गुत्थी सुलझाने में नाकाम रही है। 

पीड़ित पिता का कहना है कि पुलिस और सीबीआई ने दोषियों को पकड़ने के बजाय उन्हें ही प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। गुजरात में 15 दिन रखकर उनके कई तरह के टेस्ट कराए गए। इस बात का मलाल ताउम्र रहेगा कि बेटी को इंसाफ नहीं मिल सका। 

पुलिस के आंकड़ों के अनुसार हर पांचवें घंटे एक महिला अपने साथ हुए किसी न किसी अपराध की रिपोर्ट थानों में दर्ज कराती है। वहीं सालभर में 350 से ज्यादा महिलाएं दुष्कर्म का शिकार होती हैं। इस साल 31 अगस्त तक महिला अपराधों से संबंधित कुल 1740 मामले दर्ज हुए। 

पिछले साल समान अवधि में यह आंकड़ा 1833 और 2018 में यह संख्या 1904 थी। इन आंकड़ों के अनुसार बीते तीन वर्षों में आठ माह औसतन 1800 से ज्यादा मामले दर्ज हुए। इसके हिसाब से तकरीबन हर दिन पांच से ज्यादा मामले सामने आए। यानि दिन के हर पांचवें घंटे में एक महिला किसी न किसी अपराध का शिकार हुई।

 इस मामले में पुलिस अधिकारियों का कहना है कि आंकड़े सिर्फ अपराधों की बढ़ोतरी को नहीं दर्शाते हैं। बल्कि पुलिस की तत्परता को भी बताते हैं। उत्तराखंड पुलिस का रिकॉर्ड देश के कई राज्यों से बेहतर है। इसमें अपराध का दर्ज होना भी शामिल है। 

डीजी लॉ एंड ऑर्डर अशोक कुमार ने बताया कि महिला अपराध के मामले में सख्त हिदायत है कि किसी प्रकार की कोई लापरवाही न बरती जाए। सिर्फ महिला अपराध ही नहीं बल्कि अन्य अपराधों में भी उत्तराखंड पुलिस तत्काल केस दर्ज करती है।